शब्द बिरादरी

एक आखिरी ट्रेनिंग

‘तुमको मालूम है ये कनाट प्लेस का सबसे महँगा चौराहा है, यहाँ खड़े होने का हफ्ता सबसे ज्यादा वसूला जाता है, पुलिस भी वसूलती है और मैं यानि जिस्म के इस चलते-फिरते बाज़ार की दल्ली भी।’- आव़ाज सुन वह चौंका।

वह पहली बार खुद को बेचने के लिए इस चौराहे पर खड़ा हुआ था, उसे पता है कनॉट प्लेस के इस चौराहे पर लड़के जांघ पर पिंक रुमाल बांधते हैं, गाड़ी रुकती है वे पीछे की खिड़की खोल उसमें बैठते हैं, वहाँ रेट तय होता है, मामला पटता है तो ग्राहक उसे लेकर चली जाती है, वरना अगली रेड लाइट पर छोड़ देती है।

उसने जवाब दिया, “हाँ, पता है लेकिन मुझे जितने पैसे चाहिए उतने अपनी छोटी सी नौकरी से इकट्ठे नहीं किये जा सकते, पैसे के लिए अब कुछ भी करूँगा।”

उसके सामने अधेड़ उम्र की औरतनुमा आकृति थी, औरत नहीं बल्कि ट्रांसजेंडर,  पहली बार उसे देखा तो डर गया कि ये कौन है। उसने उससे कहा, ‘बहुत एटीट्यूड है तेरे अन्दर, इधर ऐसा नहीं चलता, यहाँ खड़े होने वालों पर हमारा कानून चलता है।’

“अच्छा फिर बताओ, मुझे क्या करना होगा?”

“इस धंधे में उतरने से पहले कुछ तैयारी करनी पड़ती है, हम तुमको बाकायदा ट्रेनिंग देंगे, तब जाकर तुम धंधे पर जा सकोगे। ग्राहक भी हम ही दिलाएंगे, जिसका तुमसे कमीशन लिया जायेगा।”

“मेरी मेहनत पर मुझे कमीशन भी देना होगा, इससे तो अच्छा है कि मैं खुद ही ग्राहक खोजूँ और सारा पैसा अपनी जेब में रखूं।”

“कैसे जाहिल इंसान हो, अभी तुमको समझाया न- यहाँ हफ्ता वसूली होती है, यहाँ कोई अपनी मर्जी से ग्राहक के साथ नहीं जा सकता। मेरी मर्जी के बिना यहाँ एक पत्ता तक नहीं हिलता।”

“…”

“अब तमीज से जाकर फुटपाथ से लगी गाड़ी में जाकर बैठो, मैं भी साथ ही आती हूँ।”- उसके लहजे में थोड़ी गर्मी थी।   

दिन भर कंपनी के सिक्योरिटी इंचार्ज की नौकरी करने वाला लड़का गॉंव में गरीबी में जीता रहा, पिता की मजदूरी से इतने पैसे न मिलते कि बहन के हाथ पीले हो सकें, माँ की दवा आ सके। बीएससी की पढ़ाई छोड़ उसने बीए किया था। सिक्योरिटी की नौकरी ज्वाइन की लेकिन इस नौकरी से वह एमबीए में दाखिले का सपना पूरा नहीं कर सकता था। उसने जिगोलो के बारें में सुना था, उसने कितनी ही मेल एस्कॉर्ट उपलब्ध कराने वाली वेबसाइट देखी, कहीं संतुष्ट न हुआ, आखिरकार खुद से ही ग्राहक खोजने की ठानी, पहले ट्रायल में ही वह इस ट्रांसजेंडर के हत्थे चढ़ गया। वह उस पल इतना डर गया कि बिना कुछ सोचे कदम कार की ओर चल पड़े।

मीना नाम की ट्रांसजेंडर स्मार्ट फोन के जरिये एस्कॉर्ट सर्विस चलाती है। मीना जोर बाग़ रहती है, वह उसे एक आलीशान फ्लैट में ले गयी। एसी, फ्रिज, स्मार्ट टीवी, इस फ्लैट में सब कुछ लग्जरी है। मीना ने उसे बैठने को कहा। वह डरते-डरते बैठ गया है। करीब नौ बजे का वक़्त है।

उसने कहा-“नौ बज गए लेकिन कुछ कमाई नहीं हुई, सुबह कम्पनी जाकर ड्यूटी भी करनी है।”

“सुन बे! कम्पनी की ड्यूटी तो आज तक भी कर ही रहा था, क्या मिला तुझे उससे?”- तेज आवाज में बोलती मीना अचानक नर्म होते हुए बोली-“अभी नौकरी भी कर ले, जब तक मैं तुझे पूरा ट्रेंड नहीं कर देती, तक तक कर नौकरी। हमारे धंधे में हाई प्रोफाइल ग्राहक आते हैं, तो उसके हिसाब से बॉडी लैंग्वेज से लेकर हर तरह का स्टाइल सीखना पड़ता है, क्या पता ग्राहक कब, कैसी डिमांड कर दे।”

मीना ने एप्पल मोबाइल निकाल एक नम्बर पर बात की और सोफ़े पर बैठ गयी। कोई दस मिनट बाद ही एक पार्लर गर्ल उनके सामने हाजिर थी। मीना ने उसे इशारे से कुछ समझाया, अगले ही वह पल पार्लर गर्ल के साथ दूसरे कमरे में था। बिना एक भी मिनट गँवाए पार्लर गर्ल ने एक-एक कर उसके जिस्म के अधिकांश कपडे उतार अलग किये, उसकी छाती, पैर हाथ, हिप्स सब जगह के बाल हटा दिए गए थे। आदमकद शीशे में खुद को देख वह पहचान नहीं पाया कि यह जिस्म मेरा है या किसी बोल्ड शीन देती अभिनेत्री का। अपना काम निपटा पार्लर गर्ल ने उसे बाथरूम का रास्ता दिखाते हुए बाथ लेकर आने का इशारा किया।  

 बाथरूम जाकर उसने शावर खोला, जिस्म से पानी छूते ही उसे सिहरन हुई, लगा कि मेरा ज़मीर मर रहा है, उसे अपने परिवार की याद आई। माँ, पिताजी, अविवाहित बहन सबके चेहरे बारी-बारी उसकी आँखों के सामने आने लगे। वह सोचने लगा- “मैं एक ऐसे परिवार से हूँ, जहाँ गरीबी में भी किसी ने कभी इस तरह का कोई समझौता नहीं किया। बहन की शादी की लिए अधेढ़ द्वेझु, दो बच्चो के पिता का रिश्ता आया था, अमीर परिवार, वहाँ से शादी करके बदले में इतना धन मिल रहा था कि आराम से गुजर-बसर हो जाती, लेकिन उसने और पिताजी ने बिना सोचे, बिना समय लिए मना कर दिया। घर में कोई सोच नहीं सकता कि वह ऐसा काम भी कर सकता है। फिर उसे ध्यान आता है, गरीबी की जिल्लत, एमबीए कर मनेजर बनने का सपना।

विचार में खोये उसे ख्याल ही न रहा कि कब तक वह शावर के नीचे रहा। बाहर आया तो सामने फोटोग्राफर को पाया, फोटोग्राफर ने पीठ, छाती, साइड सब तरफ से अलग-लग एंगल से फोटो क्लिक की।

 मीना ने फोटो देखी तो चहकते हुए बोली- “बढ़िया माल तैयार हुआ है। इसकी पहली बोली कम से कम बीस हजार लगाऊँगी।”

उसे एक कमरे में आराम की नींद सोने के लिए भेज दिया गया। सुबह इस हिदायत के साथ भेजा कि अपनी ड्यूटी की शिफ्ट पूरी करके सीधा जोर बाग़ चला आये।

अगली शाम वह ठीक समय पर मीना के फ्लैट पर चला आया। मीना ने जिगोलो ट्रेनर अभय को बुलाया हुआ है।

अभय एक बायोटेक इंजीनियर थे, एक हवाई यात्रा के दौरान उनकी मुलाक़ात एक शख़्स से हुई। यात्रा के दौरान उनकी अगली सीट पर बैठे आदमी ने उनसे उनकी आजीविका के बारे में पूछा। अभय ने बिना समझे-बूझे कहा –“मैं एक जिगोलो हूँ।” यात्रा ख़त्म होने पर जब वह सामान लेने काउंटर पर पहुँचा तो उस शख़्स को अपने इंतजार में खड़े पाया। उसने अभय को अपना नंबर दिया और फ़ोन करने के लिए कहा। अभय कॉल करके उनके दिए पते पर पहुँचा, पता चला- वह शख्स अपनी पत्नी के लिए सेवा लेना चाहता था। एक मजाक ने अभय की जिन्दगी बदल दी। कुछ दिनों बाद उसकी पत्नी ने अभय का जिक्र अपनी दोस्त से किया, जो पति से असंतुष्ट थी। अभय से सेवा लेने का सिलसिला आगे बढ़ता गया। हर बार होता ये था कि एक क्लाइंट उसे दूसरे तक पहुँचा देता था। जल्द ही उसका कैलेंडर अप्वाइंटमेंट से भर गया। अभय की आकांक्षा बढ़ी, उसने प्लान किया कि वह इस धंधे में आये नए लोगों को ट्रेनिंग देगा। उसने अलग-अलग क्लाइंट्स के साथ डील करते हुए कुछ मनोवैज्ञानिक तरीके खोजे और ये महसूस किया कि अधिकांश लोग जिगोलो का मतलब ऐसे पुरुष यौनकर्मी से लगाते हैं जिन्हें महिलाएं पैसे देकर बुलाती हैं, लेकिन यह कुछ हद तक ही सच है, उसे समझ आया कि इस पेशे में सेक्स ही सबकुछ नहीं है, बल्कि यह जटिल चाहतों के जाल और प्यार के प्रति अपनापन को समझने का पेशा है। उसने यह भी स्टडी किया कि दिखने में खूबसूरत होना भी इस पेशे में काफी नहीं, अच्छी और संयमित भाषा, संतुलित व्यवहार, भावनात्मक बातचीत के स्तर तक समझदार होना भी बेहद जरूरी है।

घरेलू और प्रोफेशनल महिलाएं, विदेशी दूतावासों की कर्मचारी, एनआरआई और टूरिस्ट, कॉलेज स्टूडेंट जैसे लोग अभय के क्लाइंट्स रहे, जिनसे डील करते हुए उसे समझ आया कि एक जिगोलो को ख़ुद को तराशना कितना जरूरी है, तभी अच्छे क्लाइंट्स और अच्छी आय की उम्मीद की जा सकती है।

अभय ने उससे कहा- “जेंटलमैन, ट्रेनिंग के लिए हर आदमी को नहीं लिया जाता, बल्कि कुछ लोग ही इसके काबिल होते हैं। तुम इस काबिल हो कि तुम्हें ट्रेनिंग दी जा सकती है।”

“जी, सर, बताइए मुझे क्या-क्या करना होगा?”

“तुम्हें अन्य लोगों से अलग नहीं दिखना है, सिवाय अधिक सेक्सुअल दिखने के, एक बढ़िया जिगोलो को सबकुछ गोपनीय रखना होता है, कुछ भी लीक नहीं किया जाना चाहिए, अपनी सोसाइटी या जॉब प्लेस में अपने क्लाइंट के बारे में नहीं बताना, ख़ुद को मर्दाना दिखने की कला के साथ-साथ बातचीत करने, प्यार करने और ख़ुद का प्रचार करने की कला में तुमको माहिर होना है।”

“जी सर, समझ गया।”

अभय ने कुछ शारीरिक कलाओं से भी उसे परिचित कराया। यह वात्स्यायन के कामसूत्र में दी कलात्मक यौनक्रियाओं को सीखने जैसा ही कुछ था। उसे मनोवैज्ञानिक रूप से बातचीत करने की कला सिखाई जाने लगी। चार से छः विजिट में अभय को यकीन हो गया कि वह जिस भी क्लाइंट के पास भेजा जायेगा, क्लाइंट को पूर्ण रूप से संतुष्टि का भाव मिलेगा।

वह हर रोज कम्पनी की छुट्टी के बाद मीना के पास आ जाता। पहली बार उसे क्लाइंट के पास भेजा जाना था, मीना ने क्लाइंट को उसकी तस्वीरें भेजी। मीना को तस्वीरें भेजते देख एक बारगी उसके चेहरे के भाव बदलने लगे। मानो अभी हालत ख़राब होने वाली है।  

उसे ख्याल आया- “मेरी तस्वीर पब्लिक होने वाली है, अगर कोई रिश्तेदार या जान-पहचान वाला ही क्लाइंट निकला और उसने मुझे पहचान लिया तो क्या होगा?”

मीना ने क्लाइंट की पसंदगी के बाद मैसेज लिखा- “नया माल है, रेट ज़्यादा लगेगा. कम पैसे का चाहिए तो दूसरे को भेजती हूँ।’

उसकी बोली लग रही थी, जो अंत में पंद्रह हज़ार रुपये में तय हुई।

इसमें उसे क्लाइंट के लिए सब कुछ करना था, उसे महसूस हुआ कि ये सब किसी फ़िल्म में नहीं, उसके साथ हो रहा है, सब कुछ बहुत अजीब था लेकिन ट्रेनिंग के मनोवैज्ञानिक प्रभाव के चलते उसे थोडा सुकून था। अगर ट्रेनिंग न हुई होती तो शायद वह सोचता- “मैं ज़िंदगी में पहली बार ये करने जा रहा हूँ, बिना प्यार के, बिना इमोशंस के एक अंजान के साथ कुछ भी कैसे किया जा सकता है?”

मीना के दिए गए पते पर टैक्सी में बैठकर वह पहुँचा। पश्चिमी दिल्ली के एक पॉश इलाके के घर के आगे टैक्सी रुक गयी। क्लाइंट ने ही टैक्सी का किराया भरा। वह घर में घुसा। घर के भीतर बड़ा फ्रिज था, जिसमें शराब की बोतलें भरी हुई थीं। घर में काफी बड़ा टीवी भी था।

क्लाइंट 32-34 साल की शादीशुदा महिला थी। दोनों की बातें शुरू हुईं, क्लाइंट ने  कहा- ”मैं गलत जगह फँस गई, मेरा पति गे है, अमेरिका में रहता है।”

उसे लगा कि बोल दे- “अगर ऐसी बात है तो तलाक लेकर किसी और से शादी कर ले।” लेकिन उसे अभय की समझाई बातें याद आई-“ क्लाइंट की हर बात को तसल्ली से सुनना, कोशिश करना कि अपनी तरफ से सलाह न दी जाए।”

क्लाइंट आगे खुद ही बोली- “तलाक दे नहीं सकती। एक तलाकशुदा औरत से कौन शादी करेगा? मेरा भी अलग-अलग चीज़ों का मन होता है, बताओ क्या करूं?” क्लाइंट ने अपना नाम निवेदिता बताया था।

कुछ भी बोलने से पहले उसे अभय की कही बात याद आई-“क्लाइंट से नाम लेकर बात करो तो वह खुद को ज्यादा इंटिमेट फील करती है।”

“निवेदिता, आज के समय में जब सब सुविधाएँ बिना किसी रिस्क के घर पर ही मिल जाती है तो तलाक के झंझट में किसलिए पड़ना, आपके पति गे हैं तो क्या हुआ, आपका शागिर्द आपको खुश करेगा, और फिर इतने आलीशान घर के आलीशान खर्चे तो पूरे हो ही रहे हैं, फ़िक्र नॉट।…“ कहते हुए उसने दो पैग बनाये, सोडा, वाटर के बारे में पूछना वह नहीं भूला था। दोनों ने शराब पी, हिंदी गाने लगाकर डांस करना शुरू किया, दोनों डाइनिंग रूम से बेडरूम गए, बेडरूम में हल्के नीले रंग की लाइट थी।

सर्विस देने तक क्लाइंट ने उससे प्यार से बात की, जैसे ही सर्विस खत्म, प्यार ख़त्म। हालाकि तय रेट के साथ उसे टिप भी मिली लेकिन वह दो समय अंतराल के बाद के व्यवहार पर चकित था। चलते हुए क्लाइंट ने पूछा- “पर्सनल नंबर मिलेगा?”

मीना से तय शर्तों के हिसाब से किसी क्लाइंट को पर्सनल नंबर देने की मनाही थी लेकिन जाने क्या सोच उसने अपना मोबाइल नंबर दे दिया। उसने क्लाइंट से कहा, “मैं ये सब पैसों की मजबूरी की वजह से कर रहा हूँ।”

”तेरी मजबूरी को तेरा शौक बना दूंगी।”- क्लाइंट के चेहरे पर एक अलग किस्म की हँसी थी।

उसे याद आया- उसकी मजबूरी तो उत्तर प्रदेश के सबसे पॉश शहर नोएडा से सैकड़ों किलोमीटर दूर उस घर से शुरू हुई थी, जिसमें उसके घर-परिवार ने गरीबी और छोटी जाति से होने की जिल्लते झेली, लोअर क्लास फैमिली में पैदा होना कितना दु:खदायी है, सिर्फ वह जानता था। आज उसने एक दहलीज़ को लांघ लिया था, उसे लगा- अब वह जल्दी ही गरीबी की दहलीज के परली पार छलांग लगायेगा।

वह मीना के लिए काम करने लगा लेकिन उसकी पहली कस्टमर निवेदिता ने भी उसे कई कॉल पर भेजा। वह निवेदिता की जिस भी कॉल पर जाता काम खत्म करके निवेदिता को थैंक्स बोलता साथ ही उसके पते पर एक गिफ्ट अवश्य छोड़ता।

वह जिन औरतों से मिला, उनमें शादीशुदा तलाकशुदा, विधवा और सिंगल लड़कियां भी शामिल थीं। इनमें से ज़्यादातर के लिए वह एक इंसान नहीं माल था, किसी-किसी के लिए चिकना भी था। जब तक उनकी इच्छाएं पूरी न हो जाती, सब अच्छे से बात करती, कहती- मैं अपने पति को तलाक देकर तुम्हारे साथ रहूँगी लेकिन बेडरूम में बिताए कुछ वक्त के बाद सारा प्यार ख़त्म हो जाता। पैसे देते हुए वह बोलती, “चल कट ले, निकल यहाँ से, या फिर पैसा उठा और भाग। कई बार गालियां भी सुनने को मिलती- ‘साला रंडा…।‘

वह सोचता- ‘अजीब है ये सोसाइटी भी, हमसे मज़े भी लेती है और हम ही को प्रॉस्टिट्यूट कहकर गालियाँ भी देती है, एक पल में हम प्रेमी होते हैं अगले ही पल सुनने को मिलता है- ‘साला…।‘

मीना उससे मोटा मुनाफा कमाती, पहले वह तीस पर्सेंट पर हिसाब करती थी, अब उसने अपना कट तीस से बढाकर पचास कर दिया था। मीना उसकी बोली लगाती, वह भी इस धंधे में बना रहा, क्योंकि इससे उसे पैसे मिल रहे थे। मार्केट में उसकी बहुत डिमांड थी। उसने तय कर लिया- ‘जब तक सिक्योरिटी में नौकरी करनी पड़ेगी और एमबीए में एडमिशन नहीं ले लूँगा, तब तक ये करता रहूँगा।‘

वह एक बड़ी डील निपटाकर मीना के पास आया, मीना को पैसे थमाते हुए बोला-“बॉस, आप क्या कमाल के क्लाइंट्स खोजती हैं, अच्छा एक बात बताओ, आपके पास मर्दों से भी तो इन्क्वायरी आती होगी, आप खुद भी कभी सर्विस देने जाती हो? सुना है कि ट्रांसजेंडर की भी बड़ी डिमांड है, इस पेशे में।”

मीना हँसी और बोली- “सुन, तुझे पता है, ट्रांसजेंडर होते कौन हैं?”

“हाँ, थोडा बहुत सुना है, दसवीं में पढ़ता था तो विज्ञान के टीचर ने बताया था- जो फर्टिलिटी के लायक नहीं होते, उन्हें ट्रांसजेंडर कहा जाता है।”- सुनकर मीना हँसी, उसने जींस टॉप उतार फेंका और बोली- “ले, आज अपने ट्रांसजेंडर को लेकर भ्रम को दूर कर। और हाँ, अभी तेरी एक ट्रेनिंग और अधूरी है, आज वह भी पूरी हो जायेगी।”

कब, कहाँ, कितना नंगा होना है, इस मामले में वह अभ्यस्त हो चुका था, उसने शरीर से नंगे लोगों से ज्यादा जमीर के नंगे देखे थे। जितने कपडे मीना के शरीर पर थे, वह भी अब उतने कपड़ों में था। मीना ने अगला स्टेप लिया, वह मीना के शरीर को देख दंग था, कोई और समय होता तो शायद उसकी चींख निकल जाती लेकिन वह अब एक प्रोफेशनल जिगोलो था। उसके मुँह से निकला- “बॉस! आप शीमेल हैं? इतने सुड़ोल स्तनों के साथ पुरुषांग भी… क्या इसी को शास्त्रों में अर्धनारीश्वर कहा गया है?”   

मीना के चेहरे पर वितृष्णा के भाव आये लेकिन उसके अगले ही पल खुद को संयत भी कर लिया, एक बनावटी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए उसने कहा- “अर्धनारीश्वर होना तो ईश्वर हो जाना है, हम अभिशप्त लोग इस शब्द के काबिल कैसे हो सकते हैं?”

“…”

“एक आखिरी ट्रेनिंग… ।” -मीना ने कहा।

मीना ने उसे गे क्लाइंट को निपटाने के टिप्स दिए और कहा- “ध्यान रखना कभी भी कोई क्लाइंट पैसिव पार्टनर से एक्टिव हो जाना चाहेगा, तब तुझे अपना विवेक इस्तेमाल करना होगा।”

“जी बॉस, समझ गया।” -कहते हुए उसने कपडे पहने। उस दिन मीना के साथ ही खाना खाया। उसे महसूस हुआ- मीना चाहे कितनी भी प्रोफेशनल हो, उसके अन्दर एक इंसान कूट-कूट कर भरा है। उसकी नजरों में मीना के लिए इज्जत थोड़ी और बढ़ गयी। 

एक दिन उसका किसी क्लाइंट को अटेंड करने का मन नहीं था, अचानक मीना का कॉल आया कि एक स्पेशल क्लाइंट है, तुम्हें एड्रेस भेज रही हूँ, जाकर अटेंड करो, वह कुछ कहता इससे पहले कॉल डिसकनेक्ट हो चुका था। ये भी पश्चिम विहार का पता था, वह दिए पते पर पहुँचा तो देख कर हैरान रह गया- घर में पति-पत्नी दोनों थे, ऐसा पहली बार था जब किसी घर में पति भी उपस्थित हो। पति ने तीन ग्लास में स्कोच डाली, तीन लार्ज पेग लेने के बाद उसने महिला को सर्विस देनी शुरू की। पति बार चेयर पर बैठा शराब पीते हुए उन्हें देखता रहा, वह उसी के सामने सोफ़े पर उसकी पत्नी के साथ था। उसे समझ आया कि ये काम दोनों की रज़ामंदी से हो रहा था, शायद दोनों की ये कोई डिज़ायर रही हो। लगभग तीन से साढ़े तीन घंटे वहाँ गुजार वह पेमेंट लेकर वापिस आया। पति ने उसे अच्छी खासी टिप भी दी।

रात बहुत हो चुकी थी, टैक्सी में बैठा ही था कि एक कॉल उसके मोबाइल पर आई। आज शराब का नशा वह ज्यादा ही महसूस कर रहा था, क्लाइंट सर्विस के बाद की थकान भी थी साथ ही वह ज़िंदगी से भी थकान महसूस कर रहा था, उसने मोबाइल निकाला तो एक पल में सारा नशा उतर गया, माँ की कॉल थी।

वह नियमित माँ को पैसे भेजता रहा था, इतना पैसा वह भेज चुका था कि उनके खर्चे के साथ बहन की शादी आसानी से निपट जाये। बहन की शादी तय हुई तो वह रोक्के पर नहीं गया। उसने ज्यादा काम होने और छुट्टी न मिलने का बहाना बना दिया था।

माँ की कॉल उठाते ही माँ ने सवाल किया- “बेटा! तू जो इतना पैसा भेजता है, जरा ये बता इतना पैसा अचानक कहाँ से बरसने लगा।

उसे इस तरह के सवाल कि उम्मीद नहीं थी। उसे इस सवाल से झुंझलाहट हुई। उसने उन्हें गुस्से में कहा, “माँ, तू पूछ रही है न कि इतने ज़्यादा पैसे कहाँ से भेजता हूँ तो सुन माँ, मैं धंधा करता हूँ… धंधा।”

माँ सिर्फ इतना बोलीं, “चुपकर, तूने शराब पी है, पीकर कुछ भी बोलता है तू।”- कहकर माँ ने फोन रख दिया।

उसने माँ को अपना सच बताया लेकिन उन्होंने उसकी बात को अनसुना कर दिया। उसके भेजे पैसे वक़्त से घर पहुँच रहे थे। तब भी माँ को शिकायत थी।

टेक्सी ने उसे उसके दस बाई दस के कमरे के सामने छोड़ा। उस रात वह बहुत रोया। सोचता रहा- “क्या मेरी वैल्यू बस मेरे पैसों तक ही है? अब वह कभी माँ का कॉल नहीं उठाएगा, न ही खुद ही कॉल करेगा।”- उस रात उसे कब नींद आई, वह खुद नहीं जानता।

उसके अकाउंट में बहन की शादी के पैसे भेजने के बाद भी इतने पैसे थे कि वह एमबीए की पढाई पूरी कर सके। उसने एमबीए में दाखिला ले लिया। यह खबर उसने सबसे पहले मीना को सुनाई। मीना ने कहा- “मुझे ख़ुशी है कि तू एक नया भविष्य लेकर यहाँ से जायेगा।”

वह इस बात को लेकर खुश था कि जिस जंजाल में वह अपने करियर की वजह से घुसा था, अब उस जंजाल से मुक्ति पा लेगा।

दिल्ली छोड़ वह खुश था, एक नया भविष्य उसके इन्तजार में था। उसने एमबीए किया, मल्टीनेशनल कम्पनी में उसे सम्मानित पद मिला। प्रेमिका मिली जो उससे शादी के सपने देखती है। पिछले पाँच-सात सालों में वह अपनी मेहनत से कम्पनी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स में शामिल हो गया है। उसकी प्रेमिका जेनी भी कम्पनी की एचआर है।

जेनी ने आज ही उससे अपनी शादी के लिए पापा से मिलने का प्लान किया है। जेनी खुश है, बहुत खुश। रात के नौ बजे हैं, वह टीवी देख रही है, चैनल बदलते हुए उसकी अंगुलियाँ रिमोट पर रुक गयी हैं, यह एक बड़े टीवी चैनल का शो है- “इनसे मिलिए”।

एंकर बोल रहा है- “आज हम आपको मिलायेंगे एक कम्पनी के सीईओ से, और जानेंगे उनकी सक्सेस स्टोरी का राज, तो आइये मिलते हैं आज के खास मेहमान से।

कैमरा घूमते हुए इस खास मेहमान के चेहरे पर आकर टिक गया, जेनी के चेहरे पर मुस्कान उभर आई। वह अपने प्रेमी को टीवी स्क्रीन पर देखकर खुश है।

वह अपने गरीबी के दिनों की कहानी टीवी पर सुना रहा है, जेनी से भी उसने वह सब कभी साझा नहीं किया जो जेनी आज टीवी पर सुन रही है, उसे आश्चर्य भी है कि उसने इस टीवी प्रोग्राम का जिक्र तक नहीं किया, जिक्र करता तो वह भी उसके साथ जाती।

एंकर ने कहा- “इतनी गरीबी में पले-बड़े हुए सिक्योरिटी की नौकरी की, फिर आज इस मुकाम तक कैसे, हमारे दर्शकों को बताइए कि कैसे ये मुकाम हासिल किया?”

“वो मेरी ज़िंदगी का सबसे अलग अनुभव था, सिक्योरिटी की जॉब से मैं न ही घर पर पैसा भेज सकता था, न ही अपने सपने पूरे कर सकता था, मैंने कुछ और करने का विचार बनाया, इन्टरनेट पर काफी सर्च किया, फिर अचानक मुझे जिगोलो के बारे में पता चला, मैंने निर्णय कर लिया कि यही एकमात्र रास्ता है जो मुझे मेरी मंजिल तक पहुंचाएगा।”

सुनकर जेनी के हावभाव बदलने लगे, उसके चेहरे पर नफरत उभर आई, एक पल को उसने टीवी बंद करने का सोचा, अगले पल विचार आया- जिसे वह बेहद प्यार करती है, उसके घिनोने व्यक्तित्व की हर परत को जानना जरुरी है, उसने टीवी देखना जारी रखा।

“इस धंधे में पैसा है, और फीमेल प्रोस्टीटयूट जैसी जिल्लत भी नहीं है, लेकिन कई बार अजीब लोग मिलते हैं, शरीर पर खरोंचे छोड़ देते हैं, ये निशान शरीर पर भी होते हैं और आत्मा पर भी। इस दर्द को दूसरा जिगोलो ही समझ सकता है, सोसाइटी इसे चाहे जिस नज़र से देखे।”

“अच्छा, आपको इस प्रोफेशन में जाने का कभी अफ़सोस नहीं हुआ?”-एंकर ने सवाल किया।

“इस प्रोफेशन में जाने का मुझे कोई अफ़सोस तो नहीं हुआ लेकिन जिगोलो बनने से पहले मेरा आत्मविश्वास ख़त्म होने लगा था, धीरे-धीरे डिप्रेशन ने मुझे घेर लिया था, डॉक्टर के पास भी गया लेकिन परेशानियां ख़त्म नहीं हुईं थी, ऐसा ही चलता तो मैं खुद को खत्म कर लेता।”

“और भी प्रोफेशन हैं, जिनमें आप बेहतर कर सकते हैं…।” -एंकर ने सवाल किया।

 “मैं बहुत ख़ूबसूरत भी नहीं था, किताबी कीड़ा होकर भी पैसे के अभाव में आगे पढ़ नहीं पाया, सामाजिक भी नहीं था। छुट्टियों के दिन अकेला ही रहता, मेरी कोई गर्लफ़्रेंड भी नहीं थी। जिगोलो बनने का सपना नहीं था, अच्छी नौकरी कम पढ़े-लिखे को मिल नहीं सकती थी, सिर्फ़ लोगों के साथ समय गुज़ार कर पैसे कमाने का विचार बहुत आकर्षक था, जिसमें जोखिम के साथ अच्छी आमदनी थी, तो मैंने इसे अपनाया।”

“किस तरह के क्लाइंट्स मिले उस दुनिया में?”

“देखिये, इस पेशे में हर उम्र, हर वर्ग, हर जाति-धर्म से लेकर शादीसुदा, कुंवारी लड़की, विधवा सबसे पाला पड़ता है, मेरे कुछ क्लाइंट मीडिया और व्यवसाय जगत से भी रहे, आमतौर पर हमारी उनसे दोस्ती हो जाती है।”

“क्लाइंट्स के बारे में आपकी क्या राय है?”

“क्लाइंट से अंतरंग होने के बाद मैं खुद को भाग्यशाली समझता कि उसने मुझे अपनी आंतरिक दुनिया में दाख़िल होने की इजाज़त दी और मैं उनका ख़्याल रख पाता था। हम बाहर जाते हैं, फ़िल्म देखते हैं, रानी मुखर्जी की फिल्म ‘लागा चुनरी में दाग’ मेरी फेवरेट फिल्म है, शायद मैं उस फ़िल्म की कहानी से खुद को रिलेट कर पाता हूँ।”

“अतीत के बारे में सोचकर कैसा लगता है?”

“हाँ, अतीत के बारे में सोचूं तो कई बार चुभता तो है, ये एक ऐसा चैप्टर है, जो मेरे मरने के बाद भी कभी नहीं बदलेगा, मैंने एमबीए कर लिया और इसी एमबीए के दम पर आज दिल्ली से दूर एक नए शहर में अच्छी नौकरी कर रहा हूँ, खुश भी हूँ। नए दोस्त बने हैं, जिनको मेरे अतीत के बारे में कुछ नहीं मालूम, शायद ये बातें मैं कभी किसी को नहीं बता पाता लेकिन आपका ऑफर आया तो लगा कि हम सच से भाग नहीं सकते, आज सोचता हूँ, जाकर सब कुछ अपनी होने वाली पत्नी से भी शेयर करूँ।”

जेनी के चेहरे पर वितृष्णा के भाव साफ़-साफ़ पढ़े जा सकते हैं।

“अच्छा, एक आखिरी सवाल- कोई ऐसा अनुभव जो आप हमारे दर्शकों से शेयर करना चाहते हैं?”-एंकर ने सवाल किया, जेनी थोड़ी सजग होकर नज़र टीवी स्क्रीन पर लगाती है।

दिमाग पर जोर डालने का अभिनय करते हुए उसने बोलना शुरू किया- मैं एमबीए में दाखिले की खबर सुनाने अपनी बॉस मीना के पास गया था।

तब की एक घटना उसकी आँखों के सामने चलचित्र की तरह चलने लगी- “तू अपनी जिन्दगी में सफल हो, बस आज एक आखिरी क्लाइंट की डील पूरी कर आ।”

मैं मुस्कुराया, दिए गए पते पर जाने की तैयारी के लिए अपने ठिकाने पर आया, तैयार होकर दिए पते पर पहुँचा।

क्लाइंट 50 साल से ज़्यादा उम्र की महिला थी, पूरी रात वह बस मुझसे बेटा-बेटा कहकर बात करती रहीं। उसने बताया-“पति को गुजरे अभी पाँच साल हुए हैं, बेटा यूएस रहता है, परिवार उनकी परवाह नहीं करता, सब उनसे दूर रहते हैं., बेटी और दामाद कभी-कभी आते हैं।”

बेटा शब्द सुन मैं असमंजस में पड़ गया, मुझे लगा कि मैं क्लाइंट को कैसे और कैसी सर्विस दे पाऊँगा? मैं सोच में पड़ गया कि क्लाइंट को उनके नाम से गायत्री बुलाऊं, आंटी कहूँ या फिर अम्मा शब्द से संबोधित करूँ? बस इतना ही बोल पाया-“ जी, बताइए, बॉडी मसाज या…?”

“नहीं, इसकी कोई जरुरत नहीं, चलो, डाइनिंग हॉल में चलकर कुछ खाते हैं।”

अमूमन मैं क्लाइंट सर्विस के दौरान कुछ खाकर नहीं जाता, यह सब अपने स्वास्थ्य को लेकर भी करना होता है। नए अनुभव के लिए मैं उनके पीछे-पीछे डायनिंग हॉल की ओर चल पड़ा। मेरी क्लाइंट गायत्री ने पूरे मातृत्व के साथ खाने की दो थाली लगायी। दोनों ने खाना शुरू किया, एक से एक लजीज व्यंजन से भरपूर खाना खाते हुए हम दोनों बातें करते रहे। खाना ख़त्म करके हम ड्राइंगरूम पहुँचे। गायत्री ने दो कप कॉफ़ी तैयार की। कॉफ़ी मग हाथ में दे सामने वाले सोफ़े पर बैठते हुए वे बोली- “बेटा, इस धंधे से जल्दी निकल जाओ, सही नहीं है ये सब।”

“आप मेरी आखिरी क्लाइंट हैं, मेरा अच्छे इंस्टिट्यूट में एमबीए में दाखिला हो गया है।, दो दिन बाद मैं क्लास ज्वाइन कर लूँगा और इस धंधे से हमेशा के लिए मुक्त हो जाऊंगा।” – मैंने उन्हें बताया।

उस रात क्लाइंट से सिर्फ बात की। सुबह उन्होंने बेटा कहते हुए तय रुपये पकडाए, मैंने रुपये लेने से इन्कार कर दिया। गायत्री देवी ने कहा- “जैसे एक माँ अपने बच्चे को सुबह स्कूल जाते हुए देती है, वैसे ही पॉकेट मनी समझ कर रख लो।”

ऐसा कहते हुए गायत्री देवी की आँखें भर आई थी, मुझे उस महिला के लिए दु:ख हुआ। पैसे मुट्ठी में ले मैं टैक्सी में बैठ उदास कदमों से लौट आया।

यह किस्सा साझा करते हुए वह मानो उस घटना में खो सा गया था। एंकर सहित सामने बैठी ऑडियंस की तालियों से उसकी तन्द्रा टूटी। उधर जेनी ने टीवी को रिमोट के बटन से शांत किया, और फ्रेस होने वाशरूम की ओर बढ़ गयी।  

____________________________________________________________________________________________

लेखक परिचय

सन्दीप तोमर 

संपर्क (मोबाइल नंबर, ईमेल); 8377875009, gangdhari.sandy@gmail.com

Exit mobile version