शब्द बिरादरी

अरुण शीतांश की कविताएं भाग -3

पिता


जब - जब गांव गए पिता
अकेला हुआ
जब - जब पिता
साथ रहे
छाती भर दूब उग आयी

पिता को बोतल से पानी पीने नहीं आया

पिता गंजी और कमीज़ की गंध से पहचान में आए
और दो किलो खीरा ले आए

पिता की नौकरी देर से लगी
साइकिल से पूरी की यात्रा

वे एक मकान और एक दालान के शौकीन हैं
जिनमें लगी रहीं चौकियां दो चार
एक चपाकल कुछ पेड़ कुछ पूजा के लिए फूल और तुलसी

पिता डॉ के पास नहीं जाना चाहते
दु:ख सह जाते हैं
और चाहते हैं कि
पत्नी भी सहे मेरी तरह

सादा खाना
सादा पहनना
और शौक के नाम पर अब चाय पीने लगे हैं

पिता जूते कम चप्पल ज्यादा पसंद करते हैं
वे उधार नहीं लेना चाहते बनिए की दुकान से

पिता की आंखें कमजोर हो गई हैं
एक आंख में रौशनी कम है
दूसरी से अब चलाने लगे हैं मोबाइल ज्यादा

लोकनृत्य और लोकगीतों के शौकीन हैं पिता
आम चूसते हुए रेडियो बजाना नहीं भूलते पिता

पिता एक गमछा छ: महीना चलाते हैं।
लुंगी नौ महीना

उन्होंने मास्टरी की नौकरी बहुत चाव और समय से पूरी की

किसी भी बात में
गंभीर हो जातें हैं पिता

पिता नशा से दूर रहना चाहते हैं
और समय से करते हैं सारा काम

Exit mobile version