दोपहर का समय था, मुझे अपने कॉलेज जाने के लिए बस लेनी थी। उस दिन न जाने मैने भगवान से कितने शिक़ायते की अपने जीवन को लेकर क्योंकि बस नहीं मिल रही थी आधा घंटा हो चुका था, मैं बस स्टैंड पर खड़ी बस का इंतज़ार कर रही सड़क पर चल रही महंगी-महंगी गाड़ियाँ देख रही थी और भगवान से ढेर सारी शिक़ायते और नाराज़गी जाहीर कर रही थी – कि काश अगर हमारे पास भी गाड़ी होती तो मैं ऐसे बस का इंतज़ार न कर रही होती।
मैं यह सारी बातें सोच ही रही थी कि तभी मेरी बस आ गई करीब आधे घंटे बाद, मैं सीट पर बैठ गई।
उस बस मे मैने दो बच्चो को देखा एक की उम्र लगभग दो वर्ष होगी और दूसरे की लगभग छः वर्ष होगी। तभी मेरी नज़र उनके साथ बैठी एक लड़की पर पड़ी मेरी ही उम्र की होगी, कपड़ो से प्रतीत हो रहा था कि मज़दूरी करके आ रही होगी और उसके साथ कई सारी महिलाएँ और भी थी सब शायद मज़दूर वर्ग की ही होगीं।
वह लड़की गर्भवती थी और थकी हुई सी भी लग रही थी। उसे देख मेरे मन में कई प्रश्न उठ रहे थे कि— क्या इसे कभी पढ़ाई का मौका भी मिला होगा? यह माँ बनने वाली हैं तो शादी कम उम्र में? बाल विवाह? और न जाने कितने सवाल सैलाब की तरह मेरे मन में उभरे।
तभी सहसा एहसास हुआ कि कहीं यह मेरी भगवान से शिकायतो का उत्तर तो नहीं?
क्योंकि मेरे पास वह सब कुछ है जो हो सकता हैं उस लड़की के लिए सपना हो। हाँ, उसके बाद मुझे अपनी जीवन जीवन से शिक़ायते बेबुनियाद लगने लगी। उस बस यात्रा ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया।
मुझे कहां पता था कि भगवान मेंरी शिक़ायतो का इतना सरल उत्तर देगा जो मेरा नज़रिया ही बदल कर रख देगा।
Jivan ka sukh santosh me he