1.
हमने जिस शख्स को हर रोज रुलाया हुआ है
मेरे मरने पे वही पास में आया हुआ
उससे रहती है मोहब्बत भी तो बच्चों जैसी
हमने वो पेड़ अगर खुद से लगाया हुआ है
जो बड़े लोग हैं रहते हैं बड़ों के जैसे
आसमां अपने को उंचे पे उठाया हुआ है
हमको क्यों फिक्र हो सूरज के डूबे जाने पर
इक दिया हमने अंधेरों में जलाया हुआ है
बस जरा ठहरो ये तूफां भी चला जाएगा
मां ने फिर हाथ दुआओं में उठाया हुआ है
जंगलों में भी वहीं हमने रविश देखी है
जैसे इंसा कोई इंसां का सताया हुआ है
वो भी इंसां है जो तलवार से सर काट गया
वो भी इंसान है जो दौड़ के आया हुआ है
गुफ्तगू करने के उसको न सलीके आए
हमने बेटों को मगर खूब पढ़ाया हुआ है
………….
2.ग़ज़ल
मुसाफिर की तरह ये घर रहा है
सुबह से शाम तक दफ्तर रहा है
कभी हालात तो ऐसे नहीं थे
परिंदा आसमां पर डर रहा है
दवाई रोज़ बढ़ती जा रही है
बुढ़ापा राह का पत्थर रहा है
कभी ये सब शहर की थी रिवायत
मगर अब गांव का मंज़र रहा है
जिसे बस हो गए दो- चार पैसे
कहां फिर फूस का छप्पर रहा है
यहां थीं बेटियां सीता के जैसी
यहां रावण शरारत कर रहा है