हिंदी की जानी मानी युवा लेखिकाओं से स्त्री व उससे जुड़े समसामयिक मुद्दों पर बातचीत की श्रृंखला के क्रम में सुप्रसिद्ध लेखिका सपना सिंह की अनुराधा गुप्ता से बातचीत। कड़ी – १

साक्षात्कार

1/ अपने बारे में कुछ बताएं। बचपन से लेकर अब तक की यात्रा के वे कुछ हिस्से जो आप हम सबसे साझा करना चाहें।

  • समान्य मध्यवर्गीय परिवेश था हमारा। पिता उत्तर प्रदेश सरकार में पशुपालन अधिकारी थे। ज्यादातर कस्बों में पोस्टिंग होती थी। वहीं के स्कूलों में पढ़ाई लिखाई हुई। मैं बचपन से ही अपने में खोई रहने वाली मरबिल्ली सी लड़की थी लिहाजा मेरी पनाह पत्र पत्रिकाएं और किताबें थीं। मम्मी पापा दोनों ही साहित्यिक अभिरुचि वाले थे। उस जमाने में प्रकाशित होने वाली सारी पत्रिकाएं हमारे घर आती थीं। पूरे परिवार को ही पढ़ने की लत थी। मुझे बनाने बिगाड़ने में उस परिवेश का पूरा योगदान है।

2/ अब तक के जीवन का कौन सा दौर आप को सबसे अधिक पसंद है?

  • जीवन के हर दौर के अपने संघर्ष अपनी खूबसूरती होती है।पर मैं अपने जीवन का सबसे खुशनुमा पल अपने बच्चों की पैदाइश और उनका बचपन मानती हूं। मेरा वो समय मेरी हर तरह की चिंताओं से परे था। कोई विचार (अच्छा या बुरा) बहुत देर तक टिकता नहीं था। कोई हताशा, कोई बड़ा प्रयोजन नहीं…बस्स दो छोटे प्राणियों की जरुरतों के बीच स्वयं की सार्थकता । अपना आप कहीं नहीं था,एक मेडीटेशन जैसी स्थिति।

3/ आप की पहली कौन सी रचना थी जो पब्लिक फोरम में आई?

  • वैसे तो मैंने बहुत कम उम्र से लिखना शुरू किया था।पुर्जी टाइप रचनाएं धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान नवभारत टाइम्स में प्रकाशित होने लगी थीं पर पहली कहानी हंस में छपी थी। 1993 सितंबर अंक में ‘ उम्र जितना लंबा प्यार

4/ आप को क्या कभी ये लगा कि आप अपने साथ की बाकी लड़कियों से कुछ अलग सोचती हैं?

  • मुझे ही नहीं, मेरे इर्द-गिर्द के लोगों को भी लगता था मैं कुछ अलग सोच की लड़की हूं। गलत बात को चुपचाप सहन कर लेना मेरा स्वभाव नहीं था। पहले बोलकर विरोध दर्ज करती थी बाद में लिखकर करने लगी।

5/ आज के समय में जब आप एक आधुनिक और प्रगतिशील परिवेश और समय से जुड़ी हुईं हैं तब आपको अपने आस पास क्या चीज़ सबसे अधिक तनाव देती है?

  • आज के समय में सबसे अधिक तनाव मुझे स्त्रियों के प्रति हिंसा और बढ़ते धार्मिक उन्माद को देखकर होती है। कोई भी समाज आधुनिक और प्रगतिशील कहलाने का अधिकारी कैसे हो सकता है जहां आधी आबादी अपनी अस्मिता और सुरक्षा को लेकर डर में जी रही हो।

6/ आप के लिए स्त्री – पुरुष का सम्बन्ध किस रूप में और क्या मायने रखता है? ऐसे में विवाह संस्था को आप कैसे देखती हैं?

  • मेरे लिए स्त्री पुरुष का परस्पर संबंध दोस्ती पर टिका होना तभी वह लम्बा और टिकाऊ होगा। विडम्बना ये है कि इसे सदियों से मालिक और नौकर के संबंध में रिड्यूस कर दिया गया है।
    विवाह संस्था में कोई गड़बड़ी नहीं है पर कुछ मुर्ख मनुष्यों ने इसे अपने फायदे के लिए इस तरह इस्तेमाल और परिभाषित किया है कि इस संस्था का एक पिलर लगातार कमजोर होता गया। किसी स्त्री और पुरुष को एक साथ रहने के लिए विवाह से बेहतर कोई और संस्था नहीं ऐसा मेरा मानना है।

7/ क्या आपको लगता है कि आज के समय का स्त्री विमर्श भटक गया है.या ये स्थिति शुरू से ऐसे ही रही है?

  • हिन्दी साहित्य में स्त्री विमर्श का जो स्वरूप आज दिख रहा है इसकी नींव तीस पैंतीस वर्ष पहले ही पड़ गई थी और इसे बकायदा सोची समझी नीति के तहत विस्तार दिया गया। कुछ लोग इसके झंडेवरदारों में शामिल थे ,जहीन लोग थे पर उनकी ही असावधानी से पूरा स्त्री विमर्श देह विमर्श में बदल दिया गया। क्लीवेज दिखाना उसकी वकालत करना,मेरी देह मेरी च्वाइस सिर्फ यही स्त्री विमर्श नहीं है। स्त्री की लड़ाई जो उसे मनुष्य समझे जाने को लेकर थी उसे कुछ वाहियात लोगों ने देह विमर्श में रिड्यूस कर दिया है।

8/ एक स्त्री होने के नाते आपको क्या लगता है कि स्त्री को सबसे अधिक किसने ठगा है?

-मेरी समझ से स्त्री को पूरे समाजिक व्यवस्था ने ठगा है। उसकी कंडीशनिंग ऐसी हुई है अपने लिए कुछ करते सोचते वह अपराधबोध से घिर जाती है। इस व्यवस्था ने उसे जिम्मेदारियों से लाद दिया है और अधिकार कुछ नहीं दिया।

9/ प्रेम और स्त्री के विवाहेतर प्रेम संबंधों को आप कैसे देखती हैं?

  • प्रेम का तो क्या है,वो कभी भी किसी से भी हो सकता है। विवाह से पहले, विवाह के बाद भी,कभी भी। लेकिन प्रेम को विध्वंसक नहीं होना चाहिए। अगर आपका प्रेम किसी परिवार के स्ट्रक्चर को खराब कर रहा है तो पीछे हट जाना बेहतर है।

10/ एक स्त्री की सबसे बड़ी ताकत और कमजोरी क्या लगती है?

  • स्त्री की सबसे बड़ी ताकत है परिस्थितियों की चरम प्रतिकूलताओं के बीच भी अपने प्रेम और क्षमा देने की ताकत को बचाकर रखना। हर स्त्री में फिनिक्स पक्षी सा जज्बा होता है अपनी राख उठने का।ये प्रेम ही उसकी कमजोरी भी है। परिवार से प्रेम, संतान से प्रेम या फिर किसी पुरुष से प्रेम,, वह कमजोर पड़ती है और ठगी जाती है।

11/ क्या मातृत्व स्त्री के कैरियर के विकास का अवरोधक है?

  • बिल्कुल! हालांकि स्त्रियों ने अब इस अवरोध से निकलने के रास्ते भी ढूंढ़ लिए हैं पर वह चौतरफा पिस रही हैं। पुरुषों ने घरबरदारी करती औरतों की दुनिया इस कदर नाकाबिले बर्दाश्त करी हुई थी,कि आज कोई औरत घर में रहना ही नहीं चाहती। आत्म सम्मान से जीने के लिए उन्हें आत्मनिर्भर बनना जरूरी लगता है। अगर घर के कामों, मातृत्व को कमतर समझा गया।

12/ पुरुष की स्त्री के जीवन में कितनी और क्या भागीदारी दिखती है?

  • उतनी ही होनी चाहिए जितनी की स्त्रियों की है पुरुषों के जीवन में। पर ये भागीदारी दिखती नहीं। इन्हें इतना सिर चढ़ा दिया गया है कि ये बराबरी शब्द समझते ही नहीं।

१३/ स्त्रियों की दृष्टि क्या संकुचित और एकांगी है? यदि नहीं तो उनकी भागीदारी, रुचि और हस्तक्षेप पुरुषों की अपेक्षा राजनीति, समाज , देश दुनिया आर्थिक मामलों आदि में क्यों न के बराबर है?

  • मैं नहीं मानती कि, स्त्रियों की दृष्टि संकुचित और एकांगी है। स्त्रियां सदियों से चुप थीं। उन्हें पढ़ने तक की सहूलियत नहीं थी । उनके दिमागों पर पहरे थे। सोचने, बोलने की आजादी उन्हें नहीं थी। लेकिन जब उन्हें बराबरी का हक मिला। पूरी दुनियां में स्त्रियों ने अपने को साबित किया।आज की स्त्री पूरी प्रखरता से सभी मुद्दों पर सोचती,बोलती और लिखती है। बल्कि मैं तो ये कहूंगी कि आज की प्रखर स्त्री के जोड़ का पुरुष ईश्वर के कारखाने में तैयार ही नहीं हो पा रहे।

१४/ सोशल मीडिया ने स्त्रियों को कितना प्रभावित किया है?

  • सोशल मिडिया के कुछेक बुरे प्रभाव को दरकिनार कर दिया जाय तो ये माध्यम सकारात्मक ही है। सोशल मीडिया के माध्यम से कितने लेखक सामने आए। यूट्यूब ने रचनात्मकता की एक नई दुनिया खोल दी।और आजकल ये रील वाला प्लेटफार्म है, उससे भी प्रतिभाएं सामने आ रहीं। हां सतर्कता तो सब जगह जरूरी है।

५/ आप की पसंदीदा फिल्म और पुस्तक ।

  • हालांकि मुझे हिन्दी मसाला फिल्में बहुत पसंद आतीं पर मेरी पसंदीदा फिल्म ‘सत्यकाम’ है।किताबें तो कई हैं , किसी एक का नाम लेना मुश्किल है।

१६/ आपकी निकट भविष्य की योजना

  • मेरी योजनाएं अक्सर फेल हो जाती हैं। फिर भी चाहूंगी कि कुछ कहानियां जो भीतर हैं,कह जाऊं।

१७/ आपके लिए मित्र ।

  • मित्र वही जो आपको जैसे आप हैं वैसा अपना लें। नजर न लगे,मैं बहुत बहुत अमीर हूं इस मामले में।

१८/ परिवार से अलग एक व्यक्ति और एक स्त्री के तौर पर आप अपने को कितना समय दे पाती हैं?

  • परिवार में स्त्री का समय जैसी कोई अवधारणा नहीं होती। एक स्वतंत्र व्यक्ति जैसा कोई विचार नहीं होता। समय के साथ धीरे धीरे अपनी जगह स्त्री को बनानी पड़ती है। अपना समय सुनिश्चित करना पड़ता है।

१९/ऐसी कौन सी चीज़ या अवस्था है जो आपको दम घोंटती प्रतीत हो?

  • बड़े पैमाने पर स्त्रियों के प्रति नकारात्मक सोच देख सुनकर मेरा दम घुटता है। हताशा होती है। आखिर कब बदलेगा ये सब ।

२०/ यौनिक शुचिता को लेकर लंबे समय से बहसें चली आ रही हैं..आप उसे कैसे देखती हैं?

  • यौन संबंधों का जो आज फास्ट फूड जैसा रवैया है, उससे मुझे परहेज है। दो मेच्योर लोगों को ये अधिकार है कि,वो अपने बीच के संबंध को कहां तक ले जाएं। यौन शुचिता भी व्यक्तिगत मुद्दा है।हो सकता है मैं यौन शुचिता की हिमायत करूं लेकिन इसे न मानने वालों को मैं जज करने की अधिकारी नहीं हूं।

२१/ हिंदी साहित्य के स्त्री लेखन ने आपको कितना प्रभावित किया और वर्तमान समय में आप उसे कहां पाती हैं?

  • हिन्दी साहित्य के स्त्री लेखन ने भिन्न-भिन्न पड़ाव पार किए।वो समय भी था जब स्त्रियां नाम बदल कर लिखती थीं। वो समय भी था जब उनके लिखे को घरेलू रोना गाना कहा गया। पर आज स्थिति अलग है। स्त्री लेखन का मजबूत हस्तक्षेप हिन्दी साहित्य में है और इसे नकारा नहीं जा सकता। मन्नू भंडारी, उषा प्रियंवदा,मृदुला गर्ग इन लोगों के लेखन से मैं खूब प्रभावित थी।

२२/ आपकी सबसे बड़ी ख्वाहिश?

  • बचपन से एक ख्वाहिश थी , मेरी एक निजी लाइब्रेरी हो जिसकी छत छूती अलमारियों में किताबें भरी हों , बीच में गोल मेज या नीची सी तख्त पर बिछे गद्दे चांदनी गाव तकिए कुशन। दरअसल उन दिनों पत्रिकाओं में जो लेखकों के तस्वीरें छपतीं थीं उनमें ऐसा देखा था। पर मेरी ये ख्वाहिश पूरी नहीं हुई।

२३/ क्या कभी ये ख्याल आता है कि काश ऐसा न होता तो कुछ यूं होता?

  • हां बहुत बार आता है। आजकल तो बार बार ये ख्याल आता है कि अगर मैं इस वाहियात बिमारी (आई एल डी) से न जूझ रही होती तो जीवन कुछ और होता। शायद ज्यादा मेहनत कर पाती लिखने पर। यात्राएं कर पाती। पर ठीक है जैसा भी है।

२४/ स्त्रियों को कमज़ोर क्यों कहा जाता है?

  • मुझे तो वो लोग महान मूर्ख लगते हैं जो स्त्री को कमजोर कहते हैं।जो बच्चे पैदा करने का दर्द सह सकता है, पति के मरने, छोड़ जाने पर अकेले अपना और अपने बच्चों का भरण पोषण कर सकता है, निस्वार्थ प्रेम कर सकता है,धोखा खाकर फिर आगे बढ़ सकता है, दुष्ट पति को सुधार सकता है, या फिर उसे छोड़ देने की हिम्मत कर सकता है। फिर वह कमजोर कैसे। स्त्रियों में पुनर्निर्माण की शक्ति है। मेडिकली भी वह ज्यादा स्ट्रांग होती हैं।

२५/ आज स्त्री शोषण के तरीके बदले हैं..शोषण आज भी है..आपको क्या लगता है एक आत्मनिर्भर शिक्षित युवती के शोषण की सबसे बड़ी वज़ह क्या होगी?

  • स्त्रियों के शोषण का एक लम्बा चौड़ा इतिहास रहा है। आज स्त्रियों की स्थिति बदली है। देश दुनिया के महत्वपूर्ण मामलों में उनका दखल और हिस्सेदारी है। पर यहां समझने वाली बात यह है कि आधी दुनिया जो उसके शोषक की भूमिका में सदियों से थी,वो तो एक इंच नहीं बदली है। बदलती हुई स्त्री को वो बर्दाश्त नहीं कर पा रहे और उनके हथियार और तीखे नुकीले होकर स्त्री को लहूलुहान कर रहे।
    अब समय है कि पुरुष बदलें। अपने को आज की नयी स्त्री के साथ सौहार्द से चलने की पहल करें। दुनियां को खराब सिर्फ हथियार ही नहीं कर रहे बल्कि कूपमण्डूक पुरुष भी कर रहे। उन्हें अब भी समझ नहीं आया कि अब स्त्री उन्हें मालिक के रूप में बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। उसे साथी और दोस्त पुरुष चाहिए।

सपना सिंह

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  1. सपना सिंह अच्छी लेखिका हैं। इस बातचीत में उन्होंने बहुत सुलझे तरीके और साफगोई से अपने विचार रखे हैं। वे सवालों से बच‌कर नहीं निकली हैं, यह महत्वपूर्ण है।
    उनके विचारों से असहमति की गुंजाइश कम से कम मेरे लिए तो नहीं है। स्त्री को लेकर उनकी चिंताएं जायज़ हैं और चिंतनीय भी।
    सपना जी को बधाई 🌹

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