हिंदुस्तान की सांस्कृतिक विरासत दीपावली

विविध

भारतवर्ष में जितने भी पर्व हैं, उनमें दीपावली सर्वाधिक लोकप्रिय और जन-जन के मन में हर्ष-उल्लास पैदा करने वाला पर्व है।
वैदिक प्रार्थना है- ‘तमसो मा ज्योतिर्गमयः’ अर्थात अंधकार से प्रकाश में ले जाने वाला पर्व है- ‘दीपावली’

वैसे तो सनातन संस्कृति को मानने वाले दीपावली का पर्व सदियों से मनाते आ रहे हैं और निश्चित रूप से इसकी प्रासांगिकता तथा व्यापकता उत्तरोत्तर वृद्धि की ओर है परंतु इस बार की दीपावली यानी (30 अक्टूबर 4 नवंबर 2024 ) आदि दीपावली के बाद यह द्वितीय दीपावली बहुत ही महत्वपूर्ण है l
आदि दीपावली से मेरा तात्पर्य है उस दीपावली से है जब प्रभु श्री राम जी लंका विजय के पश्चात अयोध्या आए थे और अयोध्या के लोगों ने लाखों दीप प्रज्वलित करके संपूर्ण अयोध्या को सजाया था तथा अपने आराध्य प्रभु व राजा राम के लिए पलक पावड़े बिछाए थे l यह त्रेता युग की बात है उसके बाद द्वापर युग गया l फिर कलयुग आया कलयुग में भी 2081 वर्ष बीत गए दूसरी दीपावली से मेरा तात्पर्य है अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा व उनके भव्य मंदिर में विराजित होने के बाद पहली दीपावली का, जो बेहद भव्य और दिव्य होने जा रही है । विश्व में एक अद्भुत आयोजन के तौर पर अपनी पहचान बना चुके अयोध्या के आठवें दीपोत्सव कार्यक्रम में इस वर्ष भी नया विश्व कीर्तिमान बनाने की तैयारी है । राम जी की पैड़ी पर दीपोत्सव की शुरुआत 2017 में हुई थी उसके बाद से वहां दीपोत्सव के जरिए प्रतिवर्ष नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं इन दिनों पूरा नगर इसी तैयारी में जुटा है इस बार रामनगरी में छोटी दीपावली पर 55 घाटों पर 25 लाख से अधिक दीप प्रज्वलित होंगे रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद होने वाले इस उत्सव को विशिष्ट बनाने की पूरी तैयारी है ।सरयू तट पर दीप सजाने का क्रम शुरू हो गया है साथ ही रामलला के भव्य मंदिर को सुसज्जित किया जाने लगा है l 3 दिन तक देश प्रदेश व विदेश के 1200 से अधिक कलाकार इस दीपोत्सव में हिस्सा लेंगे।इसमें मलेशिया म्यांमार इंडोनेशिया कंबोडिया थाईलैंड व नेपाल के साथ-साथ स्थानीय दलों द्वारा भी रामलीला का मंचन किया जाएगा। इसके अतिरिक्त लोक संस्कृति पर आधारित फरवाही, बहुरूपिया, अवधी लोकनृत्य, बामर्शिया, थारू लोकनृत्य, दीवारी, धोबिया, राई, ढेढिया, मयूर, तथा आदिवासी लोक नृत्य के माध्यम से 250 कलाकारों द्वारा शोभायात्रा भी निकाली जाएगी। इस वर्ष का दीपोत्सव भव्यता, सांस्कृतिक धरोहर और पर्यावरण सुरक्षा के संदेश के साथ विशेष रूप से मनाया जाएगा। इससे यह पूरे देश के लिए और विश्व के लिए यादगार बनेगा।
इसलिए हम आपको ध्यान कराते हैं कि 2017 से अभी तक किस वर्ष कितने दीप जलाए गए:-
2017 में 1 लाख 71 हजार
2018 में 3 लाख 1 हजार
2019 में 4 लाख 4 हजार
2020 में 6 लाख 6 हजार
2021 में 9 लाख 41 हजार
2022 में 15लाख 76हजार
2023 में 22लाख 23हजार
दीप जलाए गए थे ।
इस वर्ष यह रिकॉर्ड टूटने वाला है जिसमें 25 लाख से ऊपर दीप जलाने की योजना है l इस बार की दिवाली इतनी खास क्यों है – भव्य दिव्य नव्य श्री राम जन्मभूमि मंदिर में श्री रामलला भगवान की प्राण प्रतिष्ठा के उपरांत यह पहला दीप उत्सव है स्वाभाविक रूप से इस बार दीपोत्सव में श्रद्धालुओं की उपस्थिति अपेक्षाकृत अधिक होगी राज्याभिषेक और दीपोत्सव करने का मकसद अयोध्या के गौरव को याद दिलाना है हजारों साल पहले भगवान श्री राम अयोध्या आए और इस इतिहास को यादगार बनाने के लिए राज्य सरकार भी पीछे नहीं है । सरकार के द्वारा यह कार्य किया जा रहा है सरकार भी अयोध्या को आठ माध्यमों से लोगों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहती है l
संस्कृतिक अयोध्या
सक्षम अयोध्या
आधुनिक अयोध्या
सुगम्य अयोध्या
सुरम्य अयोध्या
भावात्मक अयोध्या
स्वच्छ अयोध्या तथा
आयुष्मान अयोध्या

           आज अयोध्या की रामलीलाओं के माध्यम से सरयू आरती के माध्यम से, दीपोत्सव के माध्यम से, और रामायण पर शोध और अनुसंधान के माध्यम से, यह दर्शन पूरे विश्व में प्रसारित हो रहा है। अयोध्या में प्रवेश के मुख्य चार द्वार बनाए गए हैं 

राम पथ, धर्म पथ, भक्ति पथ, तथा श्री राम जन्मभूमि पथ l महर्षि वाल्मीकि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा अयोध्या की भव्यता में और चार चांद लगाए हुए है l

प्रायः लोग दीपावली के मात्र बाह्य प्रसंगों का स्मरण कर पर्व मनाने की सफलता समझ लेते हैं। श्रीराम के अयोध्या प्रवेश को याद करते हैं, महर्षि दयानंद सरस्वती के स्वर्गवास की स्मृति कर लेते हैं, राष्ट्रसंत विनोबाजी के देहत्याग की गरिमा का गुणगान कर लेते हैं, किंतु प्रकाश पर्व के उन आंतरिक संदेशों को अनदेखा कर देते हैं, जो हमें अपनी आत्मा में निहित प्रकाश को उत्पन्न करने की प्रेरणा देते हैं।
जैन दृष्टि से दीपावली त्याग तथा संयम का पर्व है। सांसारिक पर्व के साथ-साथ यह आध्यात्मिक पर्व भी है। इस दिन कार्तिक कृष्ण अमावस्या को 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने निर्वाण पद (मोक्ष, सिद्धावस्था) को प्राप्त किया था। जैन समाज भगवान की निर्वाण पद प्राप्ति की खुशी में बहुत प्राचीनकाल से ही दीपावली पर्व मनाता आ रहा है। निर्वाण पद की प्राप्ति आसक्ति से नहीं विरक्ति से, भोग से नहीं त्याग से, वासना से नहीं साधना से, बाहरी लिप्तता से नहीं अहिंसा, संयम व तप से होती है।

1- भगवान राम जब अयोध्या लौटे थे

दीपावली के लिए मान्यता है कि भगवान राम रावण का वध करके चौदह वर्ष का वनवास पूरा करने के पश्चात अयोध्या वापस आये थे | नगरवासियों ने पूरे अयोध्या को रोशनी से सजा दिया था | तब से पूरे भारत में दीपावली का पर्व मनाया जाने लगा है | इसे आज भी बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

2- हिरण्यकश्यप का वध

एक पौराणिक कथा में बताया गया है कि, विष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था। दैत्यराज की मृत्यु पर प्रजा ने घी के दीये जलाकर दिवाली मनाई थी।

3- कृष्ण ने किया था नरकासुर का वध

कृष्ण भगवान् ने अत्याचारी नरकासुर का वध दीपावली के एक दिन पहले चतुर्दशी को किया था। इसके बाद इसी खुशी को मनाने के लिए उसके अगले दिन अमावस्या को गोकुलवासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं।

नरक चतुर्दशी क्या है ?

4- शक्ति ने धारण किया जब महाकाली का रूप

महाकाली ने राक्षसों का वध किया था उस समय वह बहुत ही क्रोधित थी । इनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव स्वयं उनके सामने लेट गए थे | भगवान शिव के शरीर के स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया था | इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है, इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान है।

5- राजा बलि से लिया गया दान

भगवान वामन ने राजा बलि से दान में तीन कदम भूमि मांग ली और विराट रूप लेकर तीनों लोक ले लिए। इसके बाद सुतल का राज्य बलि को प्रदान किया। सुतल का राज्य जब बलि को मिला तब वहां उत्सव मनाया गया, तबसे दीपावली की शुरुआत हो गई।

6- समुद्र मंथन

समुद्र मंथन के समय जब क्षीरसागर से महालक्ष्मीजी उत्पन्न हुई तो उस समय भगवान नारायण और लक्ष्मीजी का विवाह प्रसंग किया गया | इसके बाद से ही हर जगह उजियारा करने के लिए दीपक जलाएं गए तब से दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा

7- एक विशेष मान्यता

एक अन्य मान्यता है कि, “आदिमानव ने जब अंधेरे पर प्रकाश से विजय पाई, तबसे यह उत्सव मनाया जा रहा है। इसी दौरान आग जलाने और उनके साधनों की खोज हुई। उस खोज की याद में वर्ष में एक दिन दीपोत्सव मनाया जाता है।”

8-जब प्रकट हुए लक्ष्मी, धन्वंतरि व कुबेर

  • पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, दीपावली के दिन ही माता लक्ष्मी दूध के सागर, जिसे केसर सागर के नाम से जाना जाता है, से उत्पन्न हुई थीं। साथ ही समुद्र मन्थन से आरोग्यदेव धन्वंतरि और भगवान कुबेर भी प्रकट हुए थे।”
  • यह त्यौहार अधिकतर लोगों को पसंद है क्योंकि दीपक आनंद प्रकट करने के लिए जलाए जाते हैं। वहीं, भारतीय संस्कृति में दीपक को सत्य और ज्ञान का द्योतक माना जाता है, क्योंकि वो स्वयं जलता है, पर दूसरों को प्रकाश देता है। दीपक की इसी विशेषता के कारण धार्मिक पुस्तकों में उसे ब्रह्मा स्वरूप माना जाता है । “
  • ये भी कहा जाता है कि, ‘दीपदान’ से शारीरिक एवं आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है | जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच सकता है, वहां दीपक का प्रकाश पहुंच जाता है, दीपक को सूर्य का भाग ‘सूर्यांश संभवो दीप ।’ कहा जाता है।
  • धार्मिक पुस्तक ‘स्कंद पुराण’ के मुताबिक, दीपक का जन्म यज्ञ से हुआ है। यज्ञ देवताओं और मनुष्य के मध्य संवाद साधने का माध्यम है, यज्ञ की अग्नि से जन्मे दीपक पूजा का महत्वपूर्ण भाग है।”
    दीपावली, जो भारत में एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है, एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार सफलता, सौभाग्य, और प्रकाश की स्वरूपनी मिलने का प्रतीक है। दीपावली और भी कई कारणों से मनाई जाती है, यह लोगों के जीवन में सुख और समृद्धि की कामना करती है।
    दीपावली का महत्व धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक है। इसे भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने के दिन के रूप में भी मनाया जाता है, जब उन्होंने लंका के राक्षसराज रावण को पराजित किया था। इस दिन अयोध्या ने बेहद खुशी मनाई और दीपों से नगर को रोशन किया। यह उस समय की जीत और अच्छाई के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
    दीपावली का एक और महत्वपूर्ण आयोजन है माता लक्ष्मी की पूजा, जिन्हें धन और समृद्धि की देवी माना जाता है। लोग अपने घरों को सजाने, सफाई करने, और उन्हें दीपों से रोशन करते हैं ताकि माता लक्ष्मी उनके घर में आ सकें। यह दिन विशेष रूप से व्यापारी वर्ग के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि वे अपने व्यापार में समृद्धि की प्राप्ति की कामना करते हैं।

दीपावली का महत्व आध्यात्मिक दृष्टि से भी है, क्योंकि यह एक अच्छे कामों के लिए प्रतिज्ञा करने और बुराइयों से मुक्ति की दिशा में हमें मार्गदर्शन करता है। यह एक नयी शुरुआत की ओर संकेत करता है और लोगों को अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करता है। दीपावली के अवसर पर दीपावली की शुभकामनाएं भेजना और देना भी एक प्रसिद्ध प्रथा है। लोग अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों को शुभकामनाएं भेजकर उनके साथ खुशियाँ बांटते हैं। इससे एक दूसरे के साथ अच्छे संबंध बनते हैं और प्यार और मान-सम्मान का भाव बना रहता है।
दीपावली मनाने की सार्थकता तभी है, जब भीतर का अंधकार दूर हो। अंधकार जीवन की समस्या है और प्रकाश उसका समाधान। जीवन जीने के लिए सहज प्रकाश चाहिए। प्रारंभ से ही मनुष्य की खोज प्रकाश को पाने की रही।

दीपावली पर्व एक, पर्याय अनेक हैं-

इस पर्व का प्रत्येक भारतीय उल्लास एवं उमंग से स्वागत करता है। दीपावली का न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, भौतिक दृष्टि से भी विशेष महत्व है।
भगवान महावीर का निर्वाण दिवस- दीपावली, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का आसुरी शक्तियों पर विजय के पश्चात अयोध्या आगमन का ज्योति दिवस- दीपावली, तंत्रोपासना एवं शक्ति की आराधक मां काली की उपासना का पर्व- दीपावली, धन की देवी महालक्ष्मी की आराधना का पर्व- दीपावली, ऋद्धि-सिद्धि, श्री और समृद्धि का पर्व- दीपावली, आनंदोत्सव का प्रतीक वात्स्यायन का श्रृंगारोत्सव- दीपावली, ज्योति से ज्योति जलाने का पर्व- दीपावली। यह पर्व हमारी सभ्यता एवं संस्कृति की गौरव-गाथा है।
प्रत्येक भारतीय की रग-रग में यह पर्व रच-बस गया है। जो महापुरुष उस भीतरी ज्योति तक पहुंच गए, वे स्वयं ज्योतिर्मय बन गए। जो अपने भीतरी आलोक से आलोकित हो गए, वे सबके लिए आलोकमय बन गए। जिन्होंने अपनी भीतरी शक्तियों के स्रोत को जगाया, वे अनंत शक्तियों के स्रोत बन गए और जिन्होंने अपने भीतर की दिवाली को मनाया, लोगों ने उनके उपलक्ष्य में दिवाली का पर्व मनाना प्रारंभ कर दिया।
यह बात सच है कि मनुष्य का रुझान हमेशा प्रकाश की ओर रहा है। अंधकार को उसने कभी न चाहा न कभी मांगा। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ भक्त की अंतर-भावना अथवा प्रार्थना का यह स्वर भी इसका पुष्ट प्रमाण है। ‘अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल’ इस प्रार्थना का यह स्वर भी इसका पुष्ट प्रमाण है। ‘अंधकार से प्रकाश की ओर ले चल’ इस प्रशस्त कामना की पूर्णता हेतु मनुष्य ने खोज शुरू की। उसने सोचा कि वह कौन-सा दीप है, जो मंजिल तक जाने वाले पथ को आलोकित कर सकता है। ग्यान में प्रकाश करने वाला होता है। शास्त्र में भी कहा गया- ‘नाणं पयासयरं’ अर्थात ज्ञान प्रकाशकर है। अंधकार हमारे अज्ञान का, दुराचरण का, दुष्ट प्रवृत्तियों का, आलस्य और प्रमाद का, बैर और विनाश का, क्रोध और कुंठा का, राग और द्वेष का, हिंसा और कदाग्रह का अर्थात अंधकार हमारी राक्षसी मनोवृत्ति का प्रतीक है। जब मनुष्य के भीतर असद् प्रवृत्ति का जन्म होता है, तब चारों ओर वातावरण में कालिमा व्याप्त हो जाती है। अंधकार ही अंधकार नजर आने लगता है। मनुष्य हाहाकार करने लगता है। मानवता चीत्कार उठती है। अंधकार में भटके मानव का क्रंदन सुनकर करुणा की देवी का हृदय पिघल जाता है। ऐसे समय में मनुष्य को सन्मार्ग दिखा सके, ऐसा प्रकाश स्तंभ चाहिए। इन स्थितियों में हर मानव का यही स्वर होता है कि- ‘प्रभो, हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। बुराइयों से अच्छाइयों की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो…।’
अंधकार से घिरा हुआ आदमी दिशाहीन होकर चाहे जितनी गति करे, सार्थक नहीं हुआ करती। आचरण से पहले ज्ञान को, चारित्र- पालन से पूर्व सम्यक्त्व को आवश्यक माना है l
इस प्रकार हम प्रकाश के प्रति, सदाचार के प्रति, अमरत्व के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करते हुए आदर्श जीवन जीने का संकल्प करते हैं। प्रकाश हमारी सद्द्मवृत्तियों का, सद्ज्ञान का, संवेदना एवं करुणा का, प्रेम एवं भाईचारे का, त्याग एवं सहिष्णुता का, सुख और शांति का, ऋद्धि और समृद्धि का, शुभ और लाभ का, श्री और सिद्धि का अर्थात दैवीय गुणों का प्रतीक है। यही प्रकाश मनुष्य की अंतरचेतना से जब जागृत होता है, तभी इस धरती पर सतयुग का अवतरण होने लगता है। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक अखंड ज्योति जल रही है। उसकी लौ कभी-कभार मद्धिम जरूर हो जाती है, लेकिन बुझती नहीं है। उसका प्रकाश शाश्वत प्रकाश है। वह स्वयं में बहुत अधिक दैदीप्यमान एवं प्रभामय है। इसी संदर्भ में महात्मा कबीरदासजी ने कहा था- ‘बाहर से तो कुछ न दीखे , भीतर जल रही जोत’।
दीपावली के मौके पर सभी आमतौर से अपने घरों की साफ-सफाई, साज-सज्जा और उसे संवारने-निखारने का प्रयास करते हैं। उसी प्रकार अगर भीतर चेतना के आंगन पर जमे कर्म के कचरे को बुहारकर साफ किया जाए, उसे संयम से सजाने-संवारने का प्रयास किया जाए और उसमें आत्मारूपी दीपक की अखंड ज्योति को प्रज्वलित कर दिया जाए तो मनुष्य शाश्वत सुख, शांति एवं आनंद को प्राप्त हो सकता है।
महान दार्शनिक संत आचार्यश्री महाप्रज्ञजी लिखते हैं-
‘हमें यदि धर्म को, अंदर को, प्रकाश को समझना है और वास्तव में धर्म करना है तो सबसे पहले इन्द्रियों को बंद करना सीखना होगा। आंखें बंद, कान बंद और मुंह बंद- ये सब बंद हो जाएंगे तो फिर नाटक या टीवी देखने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। हमारे अंदर का ज्ञान स्वयं ही आलोकित हो जाता है। अंधकार का साम्राज्य स्वतः समाप्त हो जाता है। ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता केवल भीतर के अंधकार मोह- मूर्छा को मिटाने के लिए ही नहीं, अपितु लोभ और आसक्ति के परिणामस्वरूप खड़ी हुई पर्यावरण प्रदूषण और अनैतिकता जैसी बाहरी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी जरूरी है।

आतंकवाद, भय, हिंसा, प्रदूषण, अनैतिकता, ओजोन परत का नष्ट होना आदि समस्याएं 21वीं सदी के मनुष्य के सामने चुनौती बनकर खड़ी हैं। आखिर इन समस्याओं का जनक भी मनुष्य ही तो है, क्योंकि किसी पशु अथवा जानवर के लिए ऐसा करना संभव नहीं है। अनावश्यक हिंसा का जघन्य कृत्य भी मनुष्य के सिवाय दूसरा कौन कर सकता है?

आतंकवाद की समस्या का हल तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि मनुष्य अनावश्यक हिंसा को छोड़ने का प्रण नहीं करता।
जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें, क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है, जबकि परिवर्तन में विकास की संभावनाएं जीवन की सार्थक दिशाएं खोज लेती हैं। असल में दीया उन लोगों के लिए भी चुनौती है, जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, दिशाहीन और चरित्रहीन बनकर सफलता की ऊंचाइयों के सपने देखते हैं जबकि दीया दुर्बलताओं को मिटाकर नई जीवनशैली की शुरुआत का संकल्प लें l

इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। इस पर्व का जो महत्व है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्योहार है। दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को।

क्या है इसकी कथा- इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दुर्दात असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजाई जाती है l इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए।
यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पापकर्म का फल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष का समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा। तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।

इसका महत्व क्या है-

इस दिन के महत्व के बारे में कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने करके विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना करना चाहिए। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है। कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दीया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे ले कर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है। घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दीए को नहीं देखते। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं।

America Diwali Holiday: अमेरिका में पास हुआ कानून

अमेरिका में बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति दिवाली के खास अवसर पर व्हाइट हाउस में दीप भी प्रज्वलित करते हैं (Diwali Celebration in White House). संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के पेनसिल्वेनिया प्रांत ने दिवाली पर्व के मौके पर ऑफिशियल छुट्टी पोषित करने वाला एक कानून पास किया है. इस विधेयक को पेनसिल्वेनिया सीनेट ने 50-0 से पास किया. बता दें कि पेनसिल्वेनिया में करीब 2,00,000 साउथ एशियंस रहते हैं और उनके लिए रोशनी का उत्सव एक खुशी का अवसर है l

दिवाली भारत के सबसे प्रमुख त्योहारों में शामिल है. इसका सेलिब्रेशन 4-5 दिनों तक चलता है. इस खास पर्व पर लोग सोना, चांदी, गाड़ी, बर्तन, नए कपड़े आदि खरीदे जाते हैं. दिवाली पर स्कूल- कॉलेज समेत सभी शिक्षण संस्थान, बैंक और ऑफिस बंद रहते हैं. लोग घरों व प्रतिष्ठानों में पूजा-पाठ करते हैं, दोस्तों-रिश्तेदारों से मिलते हैं और अच्छे खान-पान का लुत्फ उठाते हैं. अब भारत के साथ ही कई अन्य देशों में भी दिवाली की छुट्टी रहती है.

New York Diwali Celebration: न्यूयॉर्क में भी मिलती है सरकारी छुट्टी

पिछले साल न्यूयॉर्क के मेयर एरिक एडम्स ने 2023 से न्यूयॉर्क सिटी में स्थित स्कूलों में दिवाली के दिन सार्वजनिक छुट्टी की घोषणा की थी (New York Diwali Holiday). यहां ईद पर भी छुट्टी रहती है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दिवाली का त्योहार सिर्फ भारत के ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में बसे हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन लोग हंसी-खुशी के साथ मनाते हैं. भारत के अलावा भी कई देशों में दिवाली पर आतिशबाजी की जाती है.

इन देशों में भी मिलेगी दिवाली की छुट्टी

फिजी: फिजी में 1879 से दिवाली के अवसर पर सरकारी छुट्टी दी जा रही है. वहां यह त्योहार ज्यादातर कम्युनिटीज में मनाया जाता है.

मलेशियाः मलेशिया की सरकारी छुट्टियों वाली लिस्ट में दिवाली भी शामिल है. वहां इसे हरी दिवाली कहा जाता है. इस अवसर पर ऑयल बाथ का चलन है.

मॉरिशियसः मॉरिशियस में हिंदू आबादी को देखते हुए दिवाली पर सरकारी छुट्टी का प्रावधान है. इस द्वीप पर दीपावली के खास अवसर पर लैंप जलाए जाते हैं और घरों को भी सजाया जाता है.

नेपालः नेपाल में दिवाली को तिहार या स्वन्ति कहा जाता है. वहां इस पर्व को 5 दिनों तक मनाया जाता है. हालांकि वहां इसका राष्ट्रीय अवकाश नहीं होता है.

श्रीलंका: श्रीलंका के तमिल भाषी निवासी भी दिवाली मनाते हैं. वहां के कुछ इलाकों में सरकारी छुट्टी दी जाती है. कुछ कम्युनिटीज के रिवाज भारत से अलग होते हैं.

सिंगापुरः सिंगापुर में दिवाली के अवसर पर सरकारी छुट्टी रहती है. वहां कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, खासतौर पर लिटिल इंडिया में.

दक्षिण अफ्रीका, त्रिनिदाद और टोबैगो में भी दिवाली के अवसर पर पब्लिक हॉलिडे दी जाती है.

जापान :- दिवाली की तरह ही जापान में भी ओनियो फेयर फेस्टिवल धूमधाम से मनाते हैं। ये फेस्टिवल हर साल करीबन जनवरी के महीने में सेलिब्रेट होता है। ओनियो फेस्टिवल जापान का सबसे पुराना त्यौहार है। यहां फुकुओका में दिवाली जैसी लाइटनिंग त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान 6 मशालें जलाई जाती हैं, जो कि आपदा को खत्म करने के प्रतीक के रूप में फेमस हैं। इसमें आग की बत्ती को मंदिर से निकालकर दूसरी जगह तक ले जाने की परंपरा

लंदन :- जिस तरह से भारत में दिवाली मनाई जाती है, ठीक उसी तरह लंदन में इस पर्व को सेलिब्रेट किया जाता है। इस फेस्टिवल को अंग्रेज भी काफी पसंद करते हैं। कहते हैं, भारत के बाद इंग्लैंड में ही सबसे ज्यादा इस त्योहार को धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन यहां के हर इलाके को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। इसके अलावा, ब्रिटेन के खूबसूरत शहर लेस्टर में रहने वाले हिंदू, जैन और सिख समुदाय दीपावली को काफी धूमधाम से मनाते हैं। हमारे देश की तरह इंग्लैंड के लोग भी दिवाली के दिन पार्कों और बड़े रास्तो पर जमकर पटाखे जलाते हैं।

फ्लोरिडा के अल्टूना शहर में हर साल 31 अक्टूबर से 1 नवंबर तक मनने वाला ‘सैमहेन’ फेस्टिवल बेहद शानदार तरीके से आयोजित होता है। इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। भूतों के सम्मान में सेलिब्रेट होने वाले इस त्योहार में एक खास किस्म का बॉन फायर जलाया जाता है। मनोरंजन और अलग-अलग थीम्स पर आयोजित इस फेस्टिवल को देखने के लिए दूसरे देश से लोग आते हैं। इस समय ये लोग कई तरह के हैरान कर देने वाले कारनामे भी दिखाते हैं।

नेपाल :- दिवाली पर नेपाल में तिहार फेस्टिवल भी सेलिब्रेट किया जाता है, जिसमें कुत्तों की पूजा होती है। हिंदू समुदाय के लोग 5 दिन के इस फेस्टिवल में एक दिन जानवरों की पूजा करते हैं। यहां खास तौर से कुत्तों की पूजा की जाती है। कई लोग इस मौके पर कौवे और गाय की भी पूजा करते हैं। नेपाली हिंदुओं का ये फेस्टिवल धरती पर रह रहे हर इंसान के परस्पर संबंधों को याद करने का एक तरीका है।

युरोप :- अमेरिका के कई शहरों में भी अप्रवासी भारतीयों के लिए ये त्योहार धूमधाम से सेलिब्रेट होता हैं। पिछले कई सालों से वहां राष्ट्रपति भी इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। जहां जो बाइडेन ने यहां व्हाइट हाउस में दीपावली मनाई है, वहीं पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने फ्लोरिडा स्थित मार-ए-लागो रिजॉर्ट में दिवाली सेलिब्रेट की थी। ये सब सुनने के बाद आप अंदाजा लगा सकते होंगे कि यूएस में कितने हर्षोउल्लास के साथ दिवाली सेलिब्रेट होती है

दीपावली उत्सव प्रभु श्री राम जी तथा माता लक्ष्मी से जुड़ा हुआ है एक अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार विश्व में कोई ऐसा त्यौहार नहीं है जिसमें झाड़ू से लेकर हीरे जवाहरात तक की खरीदारी होती हो l अकेले दीपावली पर ही अरबों खरबों का व्यापार होता है l मजदूर से लेकर अरबपति तक का मुंह मीठा होता है, दीपावली एक ऐसा पर्व है जिसमें स्वच्छता समृद्धि समरसता तथा सौहार्द का समावेश चतुर्दिग मिलता है पावन दीपावली के शुभ अवसर पर लेखक की ओर से आप सभी को दीपावली की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं l

लेखक :- रामसागर शुक्ल, दिल्ली

संदर्भ – 1- सनातन पर्व परंपरा एवं विस्तार संस्कृति विभाग
2- इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑर्गेनाइजेशन यूके
3-अयोध्या सांस्कृतिक विरासत वर्तमान और राज्य
4- ओरिजिन ऑफ़ हिंदुइज्म Mauritius

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