अरुण शीतांश की कविताएं भाग -2

कविता

गोडा़य गलद

जैसे दन्त स पसंद नहीं है
लेकिन स से सावन बहुत पसंद है
जैसे मृत्यु शब्द पसंद नहीं है
लेकिन उसकी सुंदरता अलग है
किसी का थूकना पसंद नहीं है
लेकिन थूक के बिना
जीवन असंभव है
इस तरह कई अक्षर, शब्द और स्थिति पसंद नहीं है

लेकिन पृथ्वी सभी को पसंद है
और मुझे पृथ्वी से ज्यादा आकाश

सांवली स्त्री का आगोश
वैसे ही उड़ते हुए पक्षी

हर व्यक्ति का अपना हरा पेड़ पसंद है
लेकिन मुझे तो आम अमरूद बेहद अच्छा लगता है
घर जिसमें आंगन बड़ा हो
और चौखट भी लंबा चौड़ा

एकदम शांत वातावरण हो
कोई प्रदूषण नहीं हो
कोई राजनीत नहीं
ऐसा राज्य पसंद है
ऐसा मन जो
गंगा किनारे से सब नहाकर निकली हों
और गीत गा रही हों

बाकी सब क्या हो
मेरे मन का हो

जैसे रविन्द्रनाथ ठाकुर की एक कविता का वाक्य –
“ओ बालिके,तू जा और अपने उन्मत्त प्रेमोत्सव में भाग ले।”

*रविन्द्र नाथ ठाकुर ने गद्द विधा में अपना पहला सामाजिक प्रहसन ‘गोडा़य गलद’ (गलत से शुरुआत ) लिखा और प्रकाशित कराया।

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