1. कविता

रोज की बंधी-बंधाई दिनचर्या से निकली ऊब नहीं है कविता दिनचर्या एक बेस्वाद च्यूंइगम है जिसे बेतरह चबाए जा रहे हैं हम कविता- च्यूइंगम को बाहर निकाल फेंकने की कोशिश है बस …और एक सार्थक प्रयास भी रंगीन स्क्रीनों की चमक से बेरंग हो चली एक पीढ़ी की आँखों में इंद्रधनुषी रंग भरने का मेरे […]

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