कबीर की कविता अर्थात् व्यक्ति का समाज और समाज का व्यक्ति सन्दर्भ
कबीर की पंक्तियाँ हैं, ‘सब दुनी सायानी मैं बौरा/ हम बिगरे बिगरी जनि औरा/’. इन पंक्तियों की जानी-पहचानी व्याख्या को छोड़ दें तो ये पंक्तियाँ एक व्यक्ति के ‘बयान’, उसके ‘स्टेटमेंट’ की तरह भी पढ़ी जा सकती हैं. एक ऐसे बयान के तौर पर, जो तब दिया गया मालूम होता है जब कबीर को उनके […]
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