अरुण शीतांश की कविताएं भाग -1

बहुत अधिक बातें अधिक लोगों नेअधिक बातें कीयानी बहुत अधिक बातें नदियों नेबहुत आराम से दूसरी नदी से बातें कीपहाड़ ने छोटे पठार से कीयहांँ तक की समुद्र भी नदियों से बातें की एक पेड़ ने दूसरे पेड़ सेरोज़ बातें कीसुखे हुए पेड़ों से भी बातें की!!!लेकिन मनुष्य उठा ले गए उसेऔर नहीं तो हरे […]

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बाल कविताएं भाग -1

” कहो साइकिल ट्रॉफी पाओ ” बोलो ऐसी कौन सवारीदिखती भी हो प्यारी- प्यारी नहीं कभी पेट्रोल वो खायेइधर-उधर पर आए-जाये घंटी जिसकी टन टन बजतीकदम कदम जो चलती रहती पायडिल जितना तेज घुमाएंउतना आगे बढ़ते जाएं नहीं जरा भी धुआं यहां परनहीं तेल का कुआं यहां पर घट जाती है इससे दूरीयोगा में भी […]

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क़ैद में क़िताब

अंधकारपूर्ण समय का सबसे मधुर गीत-क़ैद में किताब! बीसवीं शताब्दी के विश्व प्रसिद्ध जर्मन कवि बर्तोल्त ब्रेख्त की एक कविता है-अंधेरे ज़मानो में, गाया भी जाएगा? हां, गाया भी जाएगा, अंधेरे ज़मानों के बारे में। यह कविता दूसरे विश्व युद्ध के पहले वर्ष में लिखी गई। ज़ाहिर है लेखक का काम अपने समय के अंधेरों […]

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यादों में कानपुर पार्ट -2

कानपुर के मुशायरे यूं तो शेरी नशिस्ते साल भर होती रहतीं थीं लेकिन हल्के गुलाबी जाड़े शुरु होते ही कानपुर में मुशायरे ज़ोर पकड़ने लगते थे। मुशायरे ऑर्गनाइज़ करने में कई अदबी ऑर्गनाइज़ेशन एक्टिव थे और फाइनांशियल सपोर्ट में कॉरपोरेट्स का अहम रोल था। जिनमें बीआईसी यानि ब्रिटिश इंडिया कॉर्पोरेशन के अलावा जे के ग्रुप्स […]

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कवि‌ का फर्ज़

भूल गएं हैं हम, कवि का फर्ज़अरे! लिखो सच्चाई क्या है हर्ज़ लिखो तुम अबला का विलापमासूमों का दर्द, परिवार का संताप लिखो तुम भूखों की पीड़ाक्यो करते महलों में क्रीड़ा लिखो तुम आंसू गरीबों केलिखो तुम हाल फकीरों के लिखो तुम नवयुवक का त्रासकैसे बन रहा अवसाद का ग्रास कैसे मार रही इंसानियत लिखोइंसानों […]

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अध्यापिका धर्म

जैसा तुम सुकून पहुंचाने वाली होवैसा ही मधुर तुम गाती हो पर क्यों जब भी क्लास में आती होहेडफोन अपने साथ लाती हो, मैं उसे घूरता रहता हूं,वह बेचारा अकेला रह जाता है, तुम इग्नोर उसे करके फिरचॉक हाथ में उठती हो, जिस दिन मैं याद नहीं करता,उसी दिन सवाल पूछने लग जाती हो मेरे […]

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मजाज़ की याद में

ज़माने से आगे तो बढ़िए मजाज़ इश्क़ के एहसास को, वक़्त की नब्ज़ को, औरत के हक़ को और मज़लूम की आवाज़ को बड़े ही खूबसूरत अंदाज़ बयान करने का सलीका मजाज़ में था। असरारुल हक़ मजाज़ तरक्की पसंद तहरीक के नुमाइंदे थे और ये वह दौर था जब इनका इन्किलाबी कलाम हर किसी के […]

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क्या कहते हो कुछ लिख दूं,

क्या कहते हो कुछ लिख दूं,मैं ललित कलित कविताएं। चाहो तो चित्रित कर दूं,जीवन की वरुण कथाएं।। सूना कवि- हृदय पड़ा है,इसमें लालित्य नहीं है। इस छूटे हुए जीवन में,अब तो साहित्य नहीं है।। मेरे सौम्य भावों का सौदा, करती अंतर की ज्वाला। बेसुध- सी करती जाती,क्षण-क्षण कुयोग की हाला।। नीरस- सा होता जाता,जाने क्यों […]

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।   सात दिन ।

मैं तुमसे बातें करना चाहता हूंजब एकांत में तुम्हे पाता हूंतुम बहुत कुछ मुझे समझा जाती हो,मगर पलकें तक न उठाती होमैं सिर झुकाए तुममे डूबा रहता हूं,तुममें ही तुम्हारी खोज करता हूं                           मगर समय बहुत जल्दी बीत जाता है               मैं तुम्हे पूरा नहीं, कुछ हद तक ही,               अपने पास रख पाता हूं               तुम बिना […]

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