1 साथ –
पेड़ में लगा गूलर का फूल
जैसे नेनुआ के फूल
किसी छप्पर पर बैठे
उजास से भर देते हैं
जैसे दिसंबर की ठंड में एक टुकड़ा धूप
कलाई पर बंधी घड़ी
समय तो नहीं बदल सकती
लेकिन बीतता समय जरुर बताती है
जैसे किसी घने जंगल में
कच्चा रास्ता
मंजिल तक पंहुचा देता है
वसे ही तुम्हारा साथ
तुम्हारा मजबूत हथेलियों का साथ
जगनुओं की पीठ पर बंधी लालटेन
की तरह है।।
2–
घर के पीछे —
घर के पीछे
घनी अमराइयां
दीमक लगने की वजह से
सूख गयीं
उग गई हैं
उनकी जगह
कांटेदार झाड़ियां
उन पेड़ो से लिपट कर
बेले की लताएँ
न जाने कहाँ बिला गईं
रात को बेले की खुशबू जब
दूर तक महमहाती तब हम
साँसे खींच कर
भर लेते थे अपने भीतर
और वहीं पर लगे
बैजंती के नारंगी फूल
शायद समा गए
धरती की गोद में
अब वहां नहीं है ये सब
धीरे-धीरे गायब हो रहीं हैं
हमारी हमारी प्रिय चीजें
हमारे आस-पास से।।
3–
जब लिखतीं हूँ–
जब लिखतीं हूँ तुम्हारी बात
एक नदी छलकती है
पूरे सौंदर्य के साथ
जब लिखती हूँ पानी की बात
कुछ फूल बिखरने लगते हैं
जब लिखतीं हूँ तुम्हारी बात
चलने लगती है हवा मद्धम
जब लिखतीं हूँ आँचल की बात
तकली के ताने बाने बुनतें है मन
जब लिखती हूँ
तुम्हारे हाथों की बात ।
4–
कछार–
मैं बनना चाहती हूँ
सोन नदी की कछार से लगी
तपती हुई पहाड़ी
उस प्रस्तर को भेद कर
निकलता कोई फूल
जो पर्वत की हथेलियों पर
गोदने की तरह उकेरा गया हो
किसी नरम सांझ की
हथेलियों पर टिके
सूरज को छूना चाहती हूँ
पलाश के प्रेमिल फूल
धूसर मिट्टी को चूमते हैं
चेहरे पर सांध्य किरण की
नरमाई को उतार लेना चाहती हूँ
देखना चाहती हूँ
प्रतिबिंब नदी के दर्पण में
वहीं कहीं खिलना चाहती हूँ
पत्थरों को तोड़कर
निकलते फूल की तरह
शब्दों की हांडी को
माँज कर कछार पर
धर देना चाहती हूँ
किसी कविता में।।
5– नमक चेहरे का –
नमक और हल्दी के साथ
कब घुल जाती हैं
अचार में औरतें
उन्हें पता भी नही चलता
और जब तक वे
जान पाती हैं
तब तक जाने कितनी
निगाहें चटकारा लेकर
उनके नमक को
सोख लेतीं हैं ।।
6– नमक प्रेम का–
सिर्फ़ दो हाथ नहीं
दो आंखे भी सहला रही हैं
चुपचाप तुम्हारी पीठ
और हथेलियों में तुम्हारा पसीना
उस समय मेरी हथेलियों
किसी सोखते में बदल जाना चाहती थीं
और सोख लेना चाहती थी
नमक तुम्हारे प्रेम का।।
7–
आकाश में इंद्रधनुष था
उसके ठीक नीचे
आंखे
उसमें इंद्रधनुष ने
अपने रंग भर दिए
और
इन आंखों में ख़्वाब तैरने लगे ।।
8–
बहुत रिस्क है अपने होने में–
तमाम असहमतियों के बीच से
खुद को साबुत बचा लेना
किसी को ना बोल कर
उसकी उसकी नाराज़गी
को स्वीकृति देते हुए आगे बढ़ जाने में
अगर रिस्क है
तो जरूर लेना चाहिए।।
9–
कहां होंगी
वो लडकियां
जो साथ में पढ़ती थीं
जिनका ब्याह
बहुत कम उम्र में कर दिया गया था
बहुत खुश थीं
ब्याह के सलोने सपने में खो कर
अनदेखे साजन की बातें कर के
क्या अब भी खुशी की कोई किरन
अनायास कौंधती होगी
उनके होंठों पर
क्या अब भी उनके चेहरे लाल हो जाते होंगे
किसी प्यारी बात पर?
या रोटी पानी ,बाल बच्चे ,पति नातेदारी निभाते निभाते
उनकी शक्ल में उतर आती होगी किसी बुजुर्ग औरत का अक्स ।।
संप्रति – स्वतंत्र लेखन
संपर्क
सरस्वती विहार कॉलोनी ,भरूहना
जिला-मीरजापुर-231001 (उत्तर प्रदेश)
ई मेल : anumoon08@gmail.com
मन को स्पंदित करती हुई कविताएं ।
संवाद करती हुई कविताएं ।
प्रकृति को निहारती हुई कविताएं।
आप बीती कहती हुई कविताएं ।
बहुत शुक्रिया सर!
स्नेह बना रहे
बहुत उम्दा कवितायें
बहुत धन्यवाद,आभारी हूं सर!
अनुराधा जी की कविताएं प्रेम की कविताएं हैं, उत्साह की कविताएं हैं, थके हुए हरकारे के लिए उत्साह की कविताएं हैं। उम्दा कविताओं हेतु अनुराधा जी को ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाई…!
बहुत शुक्रिया आशीष जी!
कविताओं को पसंद करने के लिए।