औरत, रात, चाँद और कजरौटा!
जिंदगी का कजरौटा!
रखती वो सम्भाल कर,
ऊपर, ताखे पर..
सफ़ेद लुगरी के बित्ते भर के कपड़े मे लपेट कर!
कजरौटा अब भरने को है..
उम्र के भी चालीस पार होने को हैं।
दुःखों की काले काजर को..
हर रात खुरच-खुरच मन के दीवार से हटा..
कर देती कजरौटा के हवाले।
सुबह सूजी आँखों को
थकी नजर को..
दुनिया की नजर से बचाने को
कजरौटा से काजल निकाल
सलाई से खिंच लेती..
आँखों के मेड़ो पर एक मोटी सी रेख!
हो जाता श्रृंगार पूरा उसका।
झिड़कियां, ताने, उलाहने सुनती दिन भर..
मुस्कुराती, अम्मा की याद सताती..
घर बार याद आता..
भाई बहन का प्यार..
इया का दुलार..
जब ये सब याद आता..
आँखों मे समंदर की लहर उठती..
तब काजल की मोटी रेख तटबंध से बन जाते..
आँसुओं को अँखियों के चौखटो के भीतर धकेल देते।
फिर धीरे से आँचल के छोर
आँखों के कोरो पर धर देती..
वो मुस्कराती
यहाँ वहाँ डोलती
घर काज को निपटाती
लल्ला को कुछ कुछ देर पर दूध पिलाती
अपने उदर की आवाज़ को अनसुना छोड़
परोसती थाल व्यंजन से भरे..
सभी को खिलाती…
मुँह में आए लार को भीतर ही गटकती..
‘सभी के खाने के बाद रूखा सूखा बचे वही खाना!’
अम्मा की ये शिक्षा को मन से मानती।
ढलते शाम के साथ ढलते मन को सम्भालती।
साँझ का दीया जलाती..
तुलसी जी के चौरा पर अगरबत्ती सुलगती..
महकते धुएँ और रौशनी उठते बिंब को..
दूर तक निहारती।
रोटी में चाँद और चाँद मे रोटी देख मुस्कुराती
रात को मन को फिर से टटोलती
कितनी स्याह राख जमी है
सोच मुस्कराती, झाड़ती – पोछती ख़ुद को भीतर से..
खिड़की पर उग आए चाँद से चाँदनी के कुछ कतरन उधार मांग..
सजा लेती ख़ुद को!
देखती बनाव शृंगार अपना..
याद आता अम्मा का सपना..
जब अम्मा ने कलम वापस लें
थमा दी हाथों में कजरौटा..
सजाकर कर गौना का बक्सा
आँखे भिगोती बोली..
“मेरी बेटी राज करेगी शादी के बाद !”
औरत, रात, चाँद और कजरौटा!
Archana K. Shankar ..
Bahut khoobsoorat
बहुत शुक्रिया 🌹❤️💐