सत्ता, भाषाऔरग़ज़ल: भाग–2

प्रजातंत्र के इस दौर में जबकि तानाशाही अपने पूरे शबाब पर है, तो भी सियासतदां जानता है कि उसे यह निरंतर दर्शाना है कि उससे बड़ा ग़रीबों का मसीहा, समाज और देश का शुभचिंतक कोई हो ही नहीं सकता। तो वह करे कुछ भी, लेकिन समय- समय पर इस बात को कहता रहता है और  बार […]

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सत्ता, भाषा और ग़ज़ल: भाग–1

सत्ता और साहित्य के मध्य सम्बन्ध पर बात करने से पूर्व थोड़ी सी बात सत्ता पर कर लेना ठीक रहेगा। सत्ता के विभिन्न प्रकारों तथा सत्ता की प्रकृति पर एक नज़र डालने के पश्चात सत्ता और साहित्य के परस्पर संबंधों को अधिक अच्छे से समझा जा सकता है। जिस समाज में हम रहते हैं उस […]

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