सत्ता, भाषाऔरग़ज़ल: भाग–2
प्रजातंत्र के इस दौर में जबकि तानाशाही अपने पूरे शबाब पर है, तो भी सियासतदां जानता है कि उसे यह निरंतर दर्शाना है कि उससे बड़ा ग़रीबों का मसीहा, समाज और देश का शुभचिंतक कोई हो ही नहीं सकता। तो वह करे कुछ भी, लेकिन समय- समय पर इस बात को कहता रहता है और बार […]
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