हरे प्रकाश उपाध्याय की छः कवितायेँ

ज़िंदगी जैसे रेलगाड़ी है भाई एक ही थाली में खाते थे चारों भाईशाम को एक ही तख्त पर करते पढ़ाई कभी मुहब्बत तो कभी होती लड़ाई वक्त की आंधी जो आईउड़ी मुहब्बत पढ़ाई लड़ाई बचपन में एक दोस्त था संतोषहारते कबड्डी तो होता संतोष परीक्षा में कम नंबर आते तो भी संतोष संतोष कि साथ है […]

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विवेक उपाध्याय की कविताए भाग – 1

अहंकार मनुष्य का जीवन तब पलता हैधर्म और अधर्म के मार्ग पर चलता हैजब भी हो भयभीत तो उस ईश्वर को याद करता हैपरन्तु अहंकार वस कभी ईश्वर को बाधने चलता हैकृष्ण सभा में देते चुनौतीअहंकारी उसे स्वीकार करता हैअंत की परवाह किये बिनाफिर स्वयं नरको का भोग करता हैइसीलिए विपदा जब आती हैविवेक,बुद्धि को […]

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भीत (दीवार)

ये भीत हमारी हैऔर इसमेंये टांगी हुईतस्वीर उसकी है भीत में दरारें हो गई हैतुम भी देखोगेमगर बोलना मतरंग भी उतरा होगामगर बोलना मत क्यूंकि अब भीत परतस्वीर उसकी है अगर तुम बोलोगेतो बंद कर दियेजाओगेइन दरारों के बीचसीमेंट सेऔर कहा जाएगा‘सुधार हो गया है’ मगर तुम भीत को देखोगेतो रहा नहीं जाएगा तुमसेअच्छा तुम […]

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अरुण शीतांश की कविताएं भाग -3

पिता पिता को बोतल से पानी पीने नहीं आया पिता गंजी और कमीज़ की गंध से पहचान में आएऔर दो किलो खीरा ले आए पिता की नौकरी देर से लगीसाइकिल से पूरी की यात्रा वे एक मकान और एक दालान के शौकीन हैंजिनमें लगी रहीं चौकियां दो चारएक चपाकल कुछ पेड़ कुछ पूजा के लिए […]

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बाल कविताएं भाग -3

दादी भी स्मार्ट हुईं बदल गया है और जमानाबदल गई हैं दादी भीपहले वाली नहीं है बंदिशमिली उन्हें आजादी भी दादी हंसकर सेल्फी लेतीपोस्ट उसे फिर करती हैंलाखों लाइक करते उनकोखूब फ्रेश वो रहती हैं एटीएम में जाकर दादीपैसे खुद ले आती हैंऔर मोबाइल से खुद ही वहबिजली बिल कटवाती हैं दौर आज का जैसे […]

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सर्द रात का आदमी

सुनाई देती है मुझे सर्द रातों में ठंड सेकड़कड़ाते हुए लोगों की आहटें ,और देखता हूँ थरथराते हुएउनके नंगे बदन को ।उनकी साँसों की गति जैसेकिसी बुलेट ट्रैन का पीछा कर रही हो। वह वही मजदूर है जो पेट भरने के लिएदिन में मेहनत कर पसीना बहाता है ,और सर्द रातों के सन्नाटे मेंकहीं सड़क […]

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बाल कविताएं भाग -2

पापा आते जब दफ़्तर से पापा आतेकितनी सारी चीज़ें लाते कभी वो लाते काजू बर्फ़ीकभी वो लेकर आयें कुल्फी देते लाकर मुझको पेड़ासेब मुसम्मी अमरुद केला घूमने मुझको वो ले जायेंकार भी देखो खुद से चलायें जहां पे चाहें हम रुक जातेखींचते फोटो ख़ुशी मनाते पापा हैं तो मस्ती होतीचीज़ें सारी अच्छी होती पर मुश्किल […]

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अरुण शीतांश की कविताएं भाग -2

गोडा़य गलद जैसे दन्त स पसंद नहीं हैलेकिन स से सावन बहुत पसंद हैजैसे मृत्यु शब्द पसंद नहीं हैलेकिन उसकी सुंदरता अलग हैकिसी का थूकना पसंद नहीं हैलेकिन थूक के बिनाजीवन असंभव हैइस तरह कई अक्षर, शब्द और स्थिति पसंद नहीं है लेकिन पृथ्वी सभी को पसंद हैऔर मुझे पृथ्वी से ज्यादा आकाश सांवली स्त्री […]

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महात्माओं को माफ करो

बेवजह मत बनाओ उसेक्रांतिकारी और महानरहने दो उसे मनुष्य ही,अपनी कमजोरियों औरसंस्कारों के साथ ,जिसमेंवह हुआ पैदा और एक दिनचला गया अनंत यात्रा पर;कि मरने के पहले वहकांपती आवाज में राम-रामबोल रहा था ….।हां! सरशाम में बड़बड़ाता हुआ कभी नेहरूका हाल पूछ लिया करता था ,यह सही है कि वह चिंतित थाएक उदीयमान राष्ट्र को […]

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अरुण शीतांश की कविताएं भाग -1

बहुत अधिक बातें अधिक लोगों नेअधिक बातें कीयानी बहुत अधिक बातें नदियों नेबहुत आराम से दूसरी नदी से बातें कीपहाड़ ने छोटे पठार से कीयहांँ तक की समुद्र भी नदियों से बातें की एक पेड़ ने दूसरे पेड़ सेरोज़ बातें कीसुखे हुए पेड़ों से भी बातें की!!!लेकिन मनुष्य उठा ले गए उसेऔर नहीं तो हरे […]

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