कविता

विनोद शाही की चार कविताएं

1. असुर समय जैसे पृथ्वी के भीतर पृथ्वी नहीं लावा है चीजों के भीतर हलचल ऊर्जा की कि जैसे किसी भी दिशा में क्यों ना चलें यमराज के भैंसे पे सवार मिलते…
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रक्षाबंधन 

इस बार भी बंधे हैं बहनों के धागे मेरी कलाई में चमकीले, मोतियों जड़े लाल लाल रंग के नाड़ियों में…
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1. कविता

रोज की बंधी-बंधाई दिनचर्या से निकली ऊब नहीं है कविता दिनचर्या एक बेस्वाद च्यूंइगम है जिसे बेतरह…
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पांच कवितायेँ

तुम और कवितायें चट्टान पर जो आज कुछ नम सी लगी मुझे ।तुम अनदेखा करते रहे दो आँखें, जो तुम्हें देखने के लिए…
कविता

मेरा नाम नहीं था..

उसकी हाथों की मेंहदी मेंमेरा नाम नहीं था,उसकी ख़ुशी में दिल खुश था,पर बेचैनी थी आराम नही था। उसकी आंखों…