हिंदी की जानी मानी युवा लेखिकाओं से स्त्री व उससे जुड़े समसामयिक मुद्दों पर बातचीत की श्रृंखला के क्रम में सुप्रसिद्ध लेखिका सपना सिंह की अनुराधा गुप्ता से बातचीत। कड़ी – १

1/ अपने बारे में कुछ बताएं। बचपन से लेकर अब तक की यात्रा के वे कुछ हिस्से जो आप हम सबसे साझा करना चाहें। 2/ अब तक के जीवन का कौन सा दौर आप को सबसे अधिक पसंद है? 3/ आप की पहली कौन सी रचना थी जो पब्लिक फोरम में आई? 4/ आप को […]

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बाल साहित्य : साहित्य का वृष्टिछाया क्षेत्र

अपने देश की कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा चौदह साल तक की उम्र के बच्चों का है। देश के लगभग चौवालीस प्रतिशत लोगों की पहली भाषा हिंदी है। जिसका साहित्य तकरीबन सौ साल से ज्यादा पुराना है। उसी हिंदी साहित्य की दुनिया में बच्चों की किताबों का जिक्र नहीं होता। ‘बाल साहित्य’ जैसा अलग खाँचा बनाकर उसे […]

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”पांचवा पराठा ”

डॉक्टर गिरिराज किशोर यह कहानी डॉक्टर गिरिराज किशोर की समसामयिक कहानियों में से एक है। साहित्य अकादमी और पद्म विभूषित डॉक्टर गिरिराज किशोर एक सशक्त कथाकार रहे हैं और वे प्रतिभा सम्पन्न लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं। सन् 1991 में इनका उपन्यास ‘ढ़ाई घर’ अत्यन्त लोकप्रिय रहा जिसे सन् 1992 में एक […]

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अरुण शीतांश की कविताएं भाग -3

पिता पिता को बोतल से पानी पीने नहीं आया पिता गंजी और कमीज़ की गंध से पहचान में आएऔर दो किलो खीरा ले आए पिता की नौकरी देर से लगीसाइकिल से पूरी की यात्रा वे एक मकान और एक दालान के शौकीन हैंजिनमें लगी रहीं चौकियां दो चारएक चपाकल कुछ पेड़ कुछ पूजा के लिए […]

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बाल कविताएं भाग -3

दादी भी स्मार्ट हुईं बदल गया है और जमानाबदल गई हैं दादी भीपहले वाली नहीं है बंदिशमिली उन्हें आजादी भी दादी हंसकर सेल्फी लेतीपोस्ट उसे फिर करती हैंलाखों लाइक करते उनकोखूब फ्रेश वो रहती हैं एटीएम में जाकर दादीपैसे खुद ले आती हैंऔर मोबाइल से खुद ही वहबिजली बिल कटवाती हैं दौर आज का जैसे […]

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सर्द रात का आदमी

सुनाई देती है मुझे सर्द रातों में ठंड सेकड़कड़ाते हुए लोगों की आहटें ,और देखता हूँ थरथराते हुएउनके नंगे बदन को ।उनकी साँसों की गति जैसेकिसी बुलेट ट्रैन का पीछा कर रही हो। वह वही मजदूर है जो पेट भरने के लिएदिन में मेहनत कर पसीना बहाता है ,और सर्द रातों के सन्नाटे मेंकहीं सड़क […]

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बाल कविताएं भाग -2

पापा आते जब दफ़्तर से पापा आतेकितनी सारी चीज़ें लाते कभी वो लाते काजू बर्फ़ीकभी वो लेकर आयें कुल्फी देते लाकर मुझको पेड़ासेब मुसम्मी अमरुद केला घूमने मुझको वो ले जायेंकार भी देखो खुद से चलायें जहां पे चाहें हम रुक जातेखींचते फोटो ख़ुशी मनाते पापा हैं तो मस्ती होतीचीज़ें सारी अच्छी होती पर मुश्किल […]

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अरुण शीतांश की कविताएं भाग -2

गोडा़य गलद जैसे दन्त स पसंद नहीं हैलेकिन स से सावन बहुत पसंद हैजैसे मृत्यु शब्द पसंद नहीं हैलेकिन उसकी सुंदरता अलग हैकिसी का थूकना पसंद नहीं हैलेकिन थूक के बिनाजीवन असंभव हैइस तरह कई अक्षर, शब्द और स्थिति पसंद नहीं है लेकिन पृथ्वी सभी को पसंद हैऔर मुझे पृथ्वी से ज्यादा आकाश सांवली स्त्री […]

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“अनभ्यास का नियम ”

“सुनो ना! चलो सोचना-सोचना खेलते हैं।” “पहले तुम!” “अच्छा चलो मान लो एक ट्रेन, एक शहर में पहुंचा दे तुम्हें, रिक्शे-तांगे, सबके सोये हुए होने के समय पर!”           “अब तुम दूधिया रौशनी वाली लैम्पपोस्ट के नीचे वाली बेंच पर बैठे सुबह को अगोरते हो! प्लेटफार्म के पीछे यूकिलिप्टस के पेड़ों का झुरमुट है। दस […]

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महात्माओं को माफ करो

बेवजह मत बनाओ उसेक्रांतिकारी और महानरहने दो उसे मनुष्य ही,अपनी कमजोरियों औरसंस्कारों के साथ ,जिसमेंवह हुआ पैदा और एक दिनचला गया अनंत यात्रा पर;कि मरने के पहले वहकांपती आवाज में राम-रामबोल रहा था ….।हां! सरशाम में बड़बड़ाता हुआ कभी नेहरूका हाल पूछ लिया करता था ,यह सही है कि वह चिंतित थाएक उदीयमान राष्ट्र को […]

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