कविता

अनिल अनलाहुत की पांच कविताएं

शरद पूर्णिमा के चाँद को देखते  हुए स्नायु मंडल में एक खिंचाव सा उत्पन्न होता है। यह कविता उस तनाव मुक्ति का एक लघु प्रयास भर है। और यह निश्चित है कि इसमें वह समय भी है ,जिसमें मैं हूँ और मेरे जैसे असंख्य लोग हैं, जिनके लिए निकेनार पार्रा की तरह (” पियानो पर अकेले” )  मैं अपने शब्दों से पैदा करना चाहता हूं एक शोर कि बोलें वे भी जो सदियों से हैं चुप, मिल जाए उन्हें उनकी आत्मा का स्वर।

जो मैंने नहीं कहा।

 यही शायद मुक्ति हो हम सब की…..

यह शरद पूर्णिमा है

और मैं चीखता हूँ

एक फूल-मून मैनिया में ।

खून से सने और

पीव से लिथड़े

अपने शब्दों को

मैं वापस लेता हूँ

निकनार पार्रा की तरह ।

जैसा उसने कहा कि

मैं कह नहीं सका

जो मैं कहना चाहता था,

और जो कहा

वह कहना नहीं चाहता था।

मैं भौंकना चाहता था,

किंतु मैं दुम हिलाने लगा

कुत्ते की तरह,

मैं अपने शब्दों में

चीखना चाहता था,

किंतु खुद को मिमियाते देखा

डोमा जी उस्ताद के सामने।

उन शब्दों को जिन्हें

मैंने कभी नहीं जिया,

प्रिय पाठक !

उन्हें अपनी स्मृति से

निकाल बाहर करें।

उन पुस्तकों को

जिनमें मेरे रक्त और आँसू की

लकीरें हैं

उन्हें जला दी जाए।

इस बेशरम, बेहया  वक्त में

इस समाज को देने के लिए,

कुछ भी नहीं है मेरे पास

सिवा नपुंसक गुस्से ,

मवाद भरे जख्मों

और जीने के लिए

शर्म जैसी शर्त के ।

कि उन मेधाओं को

तिल-तिल कर जलते,

और बुझते देखा सदा के लिए

गिन्सबर्ग की मानिंद

न्यूयॉर्क के नीग्रो स्ट्रीट से

बनारस की दालमंडी के सड़ांध तक।

हाथों में लिए अंतड़ियों का एक्स-रे

और मस्तिष्क का सी टी स्कैन

अपने समय की बेहतरीन प्रतिभाओं को

“धूमिल” तक जाते देखा।

कि,

आजादी के अमृत वर्ष तक

कुछ भी नहीं बदला

सिर्फ सालों के बदलने के।

अभी कल ही “निराला” की

पुण्य-तिथि थी

और “मुक्तिबोध” के

गर्म मन के टिन के उत्तप्त छत

पर एक बार फिर नाचता हूँ

नचता हूँ

इस “आशंका के द्वीप”

अंधेरे में।

__________________________________________________________________________________

विस्थापन

 चिड़ियों की चहचहाहटें

 अब ज्यादा सुन पड़ती हैं ,

पत्तों का रंग भी

कुछ ज्यादा हरा दिखता है ।

कौओं की कांव-कांव और

मैनाओं की तीखी आवाज

बालकनी में सुन पड़ती हैं

पहले से ज्यादा ।

तोते भी कुछ ज्यादा ही

दिखते हैं पेड़ों पर ।

बस गलियों में बेमतलब

भौंकते कुत्तों का झुंड

अब नहीं दिखता ,

आवारा बिसूख गई गायें

और घर से निकाले गए जानवर

भी नहीं दिखते सड़कों पर ,

इस कोरोना काल में ।

क्या पेट की आग उन्हें भी

सताती होगी इसी तरह

और वह भी

कहीं किसी और जगह

चले गए होंगे

भोजन की खोज में ?

मैं उन लोगों के बारे में सोचता हूं, 

जो खाने की तलाश में, 

अपने गांव- घर को छोड़कर पहुंचे थे

नगरों ,शहरों और महानगरों में।

वे किस आशा में

लौट रहे हैं वापस

अपने गांव, अपने घर ,

हजारों – हजार किलोमीटर की

लंबी यात्रा आखिर

किस हौंसले से कर ले रहे हैं !

यह भूख की ताकत है?

क्या भूख में

इतनी ताकत होती है?

क्या देश की आजादी का

यह  दूसरा विस्थापन नहीं है? ?

________________________________________________________________________________________________

इस अकाल वेला में

 हत्यारी संभावनाओं से भरे

 इस विकृत और भयानक समय में ,

अपने नपुंसक और अपाहिज गुस्से में,

तप्त  अंधियारे मन के ,

टीन  के गर्म छत पर

नाचता हूँ, नचता हूँ

‘भरत-नाट्यम’(१) की विभिन्न मुद्राओं में ।

मैं पूछना चाहता हूँ

‘शिवमूर्ति’ से,

लेकिन क्या पूछूं ?

कि खलील दर्जी  कहां है ?

कहां है वह बाजार

 जो मेरे शयन- कक्ष में

‘प्रियंवद’ की  ‘पलंग’(२) तक आ पहुंचा है ?

 उसी बाजार में खुलेआम

बीच चौराहे पर,

जब ‘रामदास’(3) के सीने में

घोंपे हुए चाकू के फाल को निकाल,

जिस समय, मैं  उंगलियों से

उसके जख्म की गहराई माप रहा था ।

ठीक उसी समय

हत्यारा  ‘डोमा जी उस्ताद’(4)

 संसद के गलियारों में,  

विश्व शांति स्थापना

की बहस में शरीक

‘मैत्रेय बुद्ध’ (5)बना हुआ था ।

                                                            –1–

 बम… मारो ….बम …

नेस्तनाबूद कर दो

बगदाद, बसरा, बोगाज़-कोई (6)

और समरकंद को,

चिल्लाता है तानाशाह –

मिटा डालो मानचित्र से

दजला-फरात और गांधार को ।

बमों  और मिसाइलों के

गूँजते धमाकों के बीच

‘मोसुल’(7) की सड़कों  पर ,

सद्य:मृत  उस बच्चे  की

आँखों  पर पड़ते  रोशनी

के परावर्तन में

देखता हूँ मैं

एक,

हज़ार वर्ष पुरानी  सभ्यता का

भग्नावशेषित होता  भविष्य ,

और

एक बार फिर  उत्तप्त मन के,

टीन  के गर्म छत पर

नाच  पड़ता हूँ

भरत-नाट्यम की मुद्रा में ,

और  पूछना चाहता हूँ

बुश से ,

पुतिन से ,

गोर्ब्याचोव  से ,

बराक ओबामा से,

 नेतन्याहू से,

और ईदी अमीन से ………

……………………..

…………………….

……………………

कि,

मैं कुछ नहीं पूछना चाहता ?

नहीं चाहता कुछ भी पूछना !

कि  पिस्सुओं और जोंकों की  तरह लटके हुए

 प्रश्न

चूस  रहे हैं मेरा रक्त ।

व्रणाहत , लहू-लूहान

इस देह को

घसीटता  हुआ  ‘अंगुलिमाल’(8) की तरह

ले जाता हूँ ,

‘अनाथपिंडक’(9) के ‘जेतवन’(10) तक

और  

‘मोग्गलायन’(11) की तरह

इस संसार से

विदा हो जाता हूँ ।

___________________________________________________________________________________

नोट :

1)शिवमूर्ति  की इसी शीर्षक की एक कहानी यहाँ संदर्भित है , जिसका नायक कहानी के अंत में अर्ध विक्षिप्त होकर भरत-नाट्यम की मुद्रा में नाचने लगता है।

2) प्रियंवद की इसी शीर्षक की कहानी यहाँ संदर्भित है ।

3) गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज ने संभवत: 1951 – 52 मे  एक उपन्यासिका लिखी थी “Crónica de una muerte anunciada” यानी “क्रॉनिकल ऑफ अ डैथ फ़ोरटोल्ड’।  इस उपन्यास में सेंटियागो नसर की दिन-दहाड़े , सब लोगों के सामने और सब लोगों के जानते उसके घर के सामने हत्या हो जाती है । क्या रघुवीर सहाय का ‘रामदास’ मार्खेज का ‘सेंटियागो नसर’ तो नहीं ?

4) मुक्तिबोध की कविता ‘अंधेरे में’ में उल्लिखित डोमा जी उस्ताद , शहर का कुख्यात हत्यारा यहाँ संदर्भित है ।

5) बौद्ध परम्पराओं के अनुसार, मैत्रेय एक बोधिसत्व हैं जो पृथ्वी पर भविष्य में अवतरित होंगे और बुद्धत्व प्राप्त करेंगे तथा विशुद्ध धर्म की शिक्षा देंगे। ग्रन्थों के अनुसार, मैत्रेय वर्तमान बुद्ध, गौतम बुद्ध (जिन्हें शाक्य मुनि भी कहा जाता है) के उत्तराधिकारी होंगे।मैत्रेय के आगमन की भविष्यवाणी एक ऐसे समय में इनके आने की बात कहती है जब धरती के लोग धर्म को विस्मृत कर चुके होंगे।

6) बोगाज-कोई – एशिया माईनर में अवस्थित एक प्रदेश है जहां 1400 ईसा पूर्व के अभिलेख में हिंदू देवताओं इंद, मित्र, वरुण, नासत्य इत्यादि का नाम पाया जाता है।

7)मोसुल- मोसुल उत्तरी इराक़ का एक शहर है, नीनवा प्रान्त की राजधानी है, जो पिछले एक दशक से हिंसा  दमन , आगजनी का शिकार है।

8) गौतम बुद्ध का शिष्य जो पहले एक हिंसक डाकू था।

9), 10) – श्रावस्ती नागरी का सेठ सुदत्त (जो अपनी दानशीलता की वजह से अनाथपिंडक के नाम से मशहूर था ) , यहाँ संदर्भित है, जिसने श्रावस्ती के राजकुमार से ‘जेतवनाराम’ को। बुद्ध के देशना हेतु, जेतवन की समस्त भूमि पर स्वर्ण-मुद्राएँ बिछाकर खरीदी थीं ।

 _____________________________________________________________________________________________________

   तलाश

वह दिसंबर की एक सर्द शाम थी,

और तुम्हारी कुर्सी

खाली थी ,

वह खालीपन तैर  रहा है

अब भी मेरी

 सूनी आंखों में ….।

सड़कों पर जलते पीले

बल्ब के लट्टुओं  की

 पीली मुरझाई हुई रोशनी में

देखता हूं दूर तक

देर तक…

 तुम नहीं हो …….।

गायब हो रहे हैं

बड़ी तेजी से

लोग,चेहरे और हमारी स्मृतियां ।

एक दरकन है

एक टूटन है

 एक स्मृतिभ्रंश में जीता

मैं भटकता हूं

“मिलान” की संकरी गलियों में ,

“कामू” को देखा

उन्हीं सुनसान गलियों  में

दीवारों से लग कर रोते। 

मैं उठता हूं और

 इस बर्फीली तूफानी रात में

” लूसी ग्रे” की अनाम कब्र

 तक जाता हूं ।

“हरमन हेस्से”  के

फादर-फिक्सेशन को

समझना चाहता हूं ,

किस दुख से निजात पाने

 हेस्से, पिता की कब्र तक

 गए हर बार बार-बार।

 अमावस की काली स्याह

 रातों में

सुबकते देखा “हरमन हेस्से” को

रियूपालु के कब्रिस्तान में,

“कार्ल ऑटो जोहान्स” की

 तड़प भरी बेचैनी

दिखी मुझे

“सिल्विया प्लॉथ” के ‘डैडी’ में।

 हज़ार वर्षों की

इस बेचैनी और अनिद्रा को

बांटना चाहता हूं

“जीवनानंद दास” की नाटोर  की

“वनलता सेन” से।

मैं भिक्खु होना

चाहता हूं,

 बौद्ध भिक्षुणी  “पटाचार” और “खेमा” से

प्रव्रज्या लेता,

 दुखों से मुक्ति का

रास्ता तलाशता

भटकता रहा ,

तक्षशिला से मस्की तक ,

भद्रबाहु से कुमारगिरि तक,

और पंपोर से कालाहांडी तक।

______________________________________________________________________________________________________

हमारे समय का सच

वो एक भीगी हुई उदास शाम थी,

नितांत तन्हा और निचाट ।

एक टूटे हुए आईने में

देखता हूँ टूटते हुए अक्स को,

और एक सूने पड़े सड़क पर

पाता हूँ खुद को अकेला,

खुद से चलकर लगातार

खुद तक ही पहुँचता,

कहाँ जाना चाहता हूं मैं

पूछता हूँ ,

और भटकता फिरता हूँ

‘आम्रपाली’ की अमराइयों में

‘मांडू’ के खंडित प्राचीरों पर

‘मोंटेनेग्रो’ के लेबिरिन्थ में,

‘पाब्लो’ के ‘गुएरनिका’ में

“लोर्का”के ‘कटेलोनिया’ में,

उनींदी सूजी हुए आँखों में

स्वप्नों की ईबारत मिट

चुकी है,

वहाँ एक स्याह रिक्तता है।

मैं “मेरी मगदलीनी” से

पूछता हूँ  “यूहन्ना” की नीयत

और ‘लास्ट सपर’ के पहले

लौट आना चाहता हूं

खुद तक।

कातिल संभावनाओं से भरे

उस शहर में,

मैं “सांतियागो नसर” को

खोजता है,

लेकिन उसका

कत्ल हो चुका है,

“रामदास” चाकू लिए

अब भी खड़ा है

गली के मोड़ पर,

और  “रघुवीर सहाय”

असहाय मौन हैं,

यह हमारे समय का सच है

और मैं इसका साक्षी हूँ।  

_________________________________________________________________________________________________________             परिचय                                       

अनिल अनलहातु
शिक्षा : बी.टेक., खनन अभियंत्रण, आई.आई.टी. (आईएसएम), धनबाद। एम.बी.ए. (मार्केटिंग मैनेजमेंट), कम्प्यूटर साइंस में डिप्लोमा, एम.ए. (हिन्दी)।
शास्त्रीय संगीत एवं गीत तथा चित्रकला में विशेष रुचि तथा प्राचीन इतिहास, पुरातत्व, बौद्ध दर्शन, एंथ्रोपोलोजी, समाजशास्त्र आदि विषयों का विशेष अध्ययन।
जन्म : बिहार के भोजपुर (आरा) जिले के बड़का लौहर-फरना गाँव में दिसंबर 1972.

प्रकाशन :
1) ‘बाबरी मस्जिद तथा अन्य कविताएँ’, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन,दिल्ली से प्रकाशित।
2) समकाल की आवाज, चयनित कविताएं, न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, दिल्ली से प्रकाशित।
3) बीस से अधिक साझे संकलनों में कविताएँ संकलित। 4)आलोचना की पुस्तक ‘आलोचना की रचना’ तथा दूसरा कविता संग्रह ‘तूतनखामेन खामोश क्यों है’ प्रकाशनाधीन ।
अनियतकालीन पत्रिका ‘अनलहक’ का सम्पादन।

तीन सौ से ज्यादा कविताएँ, वैचारिक लेख, समीक्षाएँ एवं आलोचनात्मक लेख हंस, कथादेश, वागर्थ, नया ज्ञानोदय, वर्तमान साहित्य, पहल, समकालीन सरोकार, पब्लिक अजेंडा, परिकथा, उर्वशी, समकालीन सृजन, हमारा भारत, निष्कर्ष, मुहीम, अनलहक, माटी, आवाज, कतार, रेवांत, पाखी, कृति ओर, बहुमत, चिंतन-दिशा, शिराजा, प्रभात खबर, हिंदुस्तान, दैनिक भास्कर आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित ।
‘कविता-इण्डिया’, ‘पोएट्री लन्दन’, ‘संवेदना’, ‘पोएट’, ‘कविता-नेस्ट’ आदि अंग्रेजी की पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं में अंग्रेजी कविताएँ प्रकाशित।

पुरस्कार :
१) ‘बाबरी मस्जिद तथा अन्य कविताएँ’ कविता संग्रह पर ‘साहित्य शिल्पी पुरस्कार, 2018
२)’प्रतिलिपि कविता सम्मान, 2015
३)’कल के लिए’ पत्रिका द्वारा ‘मुक्तिबोध स्मृति कविता पुरस्कार’।
४)अखिल भारतीय हिंदी सेवी संस्थान, इलाहाबाद द्वारा ‘राष्ट्रभाषा गौरव’ पुरस्कार
५)आई.आई.टी. कानपुर द्वारा हिंदी में वैज्ञानिक लेखन पुरस्कार
६) “समकाल की आवाज” कविता संग्रह के लिए साहित्य गौरव सम्मान ‘2024 से सम्मानित।

संप्रति :

स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) में महाप्रबंधक।

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