कविता

महात्माओं को माफ करो

बेवजह मत बनाओ उसे
क्रांतिकारी और महान
रहने दो उसे मनुष्य ही,
अपनी कमजोरियों और
संस्कारों के साथ ,जिसमें
वह हुआ पैदा और एक दिन
चला गया अनंत यात्रा पर;
कि मरने के पहले वह
कांपती आवाज में राम-राम
बोल रहा था ….।
हां! सरशाम में बड़बड़ाता हुआ कभी नेहरू
का हाल पूछ लिया करता था ,
यह सही है कि वह चिंतित था
एक उदीयमान राष्ट्र को लेकर
किंतु क्रांति की ओट में खड़े होकर
उस सच को न झुठलाओ कि
वह मरने के समय राम-राम
बुदबुदा रहा था न कि ….
उसे उन उपलब्धियों से न ढको
जो उसकी न थीं क्योंकि
उसने जो कुछ अर्जित किया था
अपने काव्य कर्म से ,
अगर उसे समझ सको तो
पर्याप्त है उसे अमरत्व प्रदान करने
के लिए।
और मत लिखो हे राम !
उस नंगे फकीर के समाधि लेख पर
यह झूठ न ही लिखो तो बेहतर
क्योंकि सुननेवालों और देखनेवालों ने
आह और कराह की ही ध्वनि सुनी थी,
वही सुनने दो दुनिया को
जो सच था,
उस पुण्यात्मा को झूठे खिताबों

Related posts
कविता

निहाल सिंह की पांच कवितायेँ

1. मैं न आऊं लौटकर तो मैं न आऊं लौटकर…
Read more
कविता

निवेदिता की तीन कवितायेँ

बचे रहो प्रेमसहसा एक फूल गिराफिर कई…
Read more
उभरते सितारेकविता

सुमन शेखर की छः कविताएँ

समय का पैर घिसता जाता है स्थिरता…
Read more

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *