उसकी हाथों की मेंहदी में
मेरा नाम नहीं था,
उसकी ख़ुशी में दिल खुश था,
पर बेचैनी थी आराम नही था।
उसकी आंखों की चिट्ठियों में
अब भी जिक्रे-मोहब्बत देखी मैंने,
मेरी ही चाहत की शायरी में
आखिरी सलाम नहीं था।
चाहा था की एक रोज उसे
अपने दिल की मोहब्बत दिखाएंगे,
पर चकोर की किस्मत में
चांद से मिलना आसान नही था।
वो खुश रहे जहा भी रहे
की गलती मेरी थी,
किसी को बेइंतहा चाहना
और जाने देना
दीन-ओ-ईमान नहीं था।
उसकी हाथों की मेंहदी में
मेरा नाम नहीं था..
अमरेन्द्र कुमार ‘अमर’