कविता

कवि‌ का फर्ज़

भूल गएं हैं हम, कवि का फर्ज़
अरे! लिखो सच्चाई क्या है हर्ज़

लिखो तुम अबला का विलाप
मासूमों का दर्द, परिवार का संताप

लिखो तुम भूखों की पीड़ा
क्यो करते महलों में क्रीड़ा

लिखो तुम आंसू गरीबों के
लिखो तुम हाल फकीरों के

लिखो तुम नवयुवक का त्रास
कैसे बन रहा अवसाद का ग्रास

कैसे मार रही इंसानियत लिखो
इंसानों में छिपी हैवानियत लिखो

कलम से भरो नई हुंकार ,
जोरदार हो ये ललकार ।

सोया है समाज तो उसे जगाओ
कलम से नया आंदोलन चलाओ

Related posts
कविता

निहाल सिंह की पांच कवितायेँ

1. मैं न आऊं लौटकर तो मैं न आऊं लौटकर…
Read more
कविता

निवेदिता की तीन कवितायेँ

बचे रहो प्रेमसहसा एक फूल गिराफिर कई…
Read more
उभरते सितारेकविता

सुमन शेखर की छः कविताएँ

समय का पैर घिसता जाता है स्थिरता…
Read more

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *