क्या कहते हो कुछ लिख दूं,

कविता

क्या कहते हो कुछ लिख दूं,
मैं ललित कलित कविताएं।

चाहो तो चित्रित कर दूं,
जीवन की वरुण कथाएं।।

सूना कवि- हृदय पड़ा है,
इसमें लालित्य नहीं है।

इस छूटे हुए जीवन में,
अब तो साहित्य नहीं है।।

मेरे सौम्य भावों का सौदा, करती अंतर की ज्वाला।

बेसुध- सी करती जाती,
क्षण-क्षण कुयोग की हाला।।

नीरस- सा होता जाता,
जाने क्यों मेरा जीवन।

भूला- भूला सा फिरता,
लेकर यह खोया सा मन।।

कैसे जीवन की प्याली टूटी,
और मधु रहा न बाकी?

कैसे अटूट हो गया अचानक,
मेरा मतवाला साकी?

सुध में मेरे आते ही,
छिप गया सुनहला सपना।

खो गया कहां पर न जाने,
जीवन का वैभव अपना।।

क्यों कहते हो लिखने को,
पढ़ लो आंखों में सहृदय।

मेरी सब मौन कथाएं,
मेरे सपनों का परिचय।।

अनु.एम.

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