
वह चली गईं बनवास
वह रहीं अकेले शिशु के पास
रखती थी वह अपने प्रिय पर
आंख बंद करके विश्वास
बस इतना ही तो किया स्त्री ने ।
वह अपने दुःख को कभी नहीं बात पाईं
वह अपने हृदय के प्रेम को कभी नहीं प्रमाणित कर पाईं
संपूर्ण हृदय में रखकर उसको ही
उसी को नहीं बता पाईं
बस इतना ही तो किया स्त्री ने।
वह निकल पड़ी अपने प्रिय के साथ
बनकर सावित्री बाई फुले
स्त्री शिक्षा के समर्थन में
सहकर पत्थर, गोबर की मार
बस इतना ही तो किया स्त्री ने।
जब सोता हुआ छोड़ गए सिद्धार्थ
वह विरह में रहीं देखती बस
पिया की आस
बस इतना ही तो किया स्त्री ने।
जब छोड़ गए लक्ष्मण
लेकर उर्मिला से यह वचन
प्रिय मैं जब जाने लगूं बनवास
न आने देना अश्रु तुम आंखों में
राह तकती रहीं उर्मिला
बस इतना ही तो किया स्त्री ने।
जब जाने लगे श्री कृष्ण
करने अपने कर्तव्य को पूर्ण
तब विरह में जीती रहीं राधिका
भेज अपने प्रिय को कर्तव्य पूर्ण करने हेतु
स्वयं को कर लिया बर्बाद
बस इतना ही तो किया स्त्री ने।
और लोग कहते हैं
प्रेम में क्या किया स्त्री ने?
शिशु को अपने कंधों से बांध
होकर अश्व पर वह सवार
लड़ते लड़ते मर्दानी कहलाई
झांसी की वह रानी कहलाई
अंतिम सांस तक दिया बलिदान
करते हुए अपने प्रिय को, देश को याद
बस इतना ही तो किया स्त्री ने।
शिशु प्रेम में,
पिता मोह में,
मातृ मोह में,
भ्रातृ मोह में,
पति मोह में,
देश प्रेम में,
सर्वस्व न्यौछावर कर,
कठिन तपस्या से,
अग्निकुंड में भस्म होकर
पुनः से जन्म लेकर
प्रेम को प्राप्त किया है स्त्री ने
बस इतना ही तो किया है स्त्री ने।
–विष्णुप्रिया
परास्नातक (दिल्ली विश्वविद्यालय,द्वितीय वर्ष)
Vishnupriya beta tum to kmaal ki writer ho
क्योंकि स्त्री ने कभी कुछ नहीं चाहा, जो चाहा वो कभी मिला नहीं