शंकरानंद की पाँच कविताएं

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१.इंतजार का आलाप

अक्सर इंतजार की ऊब

बहुत लंबी होती है

रास्ते वही होते हैं

लेकिन आने की पदचाप सुनना

एक सुख की तरह है

इसके लिए दिल थामना पड़ता है

मिनटों और पलों में बीतता समय

कब सदियों में बदल जाता है

यह वही बता सकता है

जिसने कभी बेचैनी से

किया हो किसी का इंतजार

यह पृथ्वी अपनी गति से घूमती है

उससे ज्यादा गति से कांपता है मन

घूमते और थरथराते हुए अपनी धुरी पर

सुनने में एक आसान सा शब्द है इंतजार

लेकिन आलाप में यह इतना लंबा खिंचता है कि

कंठ सूख जाते हैं

बहने लगते हैं आंसू

कोई पूछे तो कहना पड़ता है झूठ कि

आंखों में कुछ गड़ गया है

इसके बावजूद इंतजार जरूरी है

जैसे जरूरी हैं आंखें

जैसे जरूरी है रास्ते

जैसे बेचैनी जरूरी है

जैसे जरूरी है धूप

जैसे जरूरी है हवा

इसके बिना

जिंदगी ठहरा हुआ पानी है और

ठहरे हुए पानी का भविष्य कौन नहीं जानता।

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२.दीवार की काई

रहने से आसपास की हवा भी

हल्दी और भात की गंध से

भर जाती है

नहीं रहने से धूल भी

महकती है इस तरह कि

सांस लेना मुश्किल हो जाता है उसके बीच

कहीं पर भी एक मनुष्य का होना

जीने की चमक को बचा लेता है

जिस पर रोज गिरती है धूल

जमती है काई

पानी की परत पर आटे की छाप

खाली और वीरान जगहें

दिन में अलग लगती हैं

रात में अलग

लेकिन भयावह वे हमेशा होती हैं

उसके पास से गुजरना

मुश्किल होता है

दम घुंट जाता है उसकी

पुरातन हवा में

दीवार पर की जमी हुई काई

तस्वीर खींचने के लिए अच्छी हो सकती है

क्योंकि उसकी रंगत अलग होती है

उसका गाढ़ापन चकित करता है

लेकिन यह भी सच है कि

वह काई एक दिन

दीवार की ईंट को खा जाती है!

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३.उदासी से बचना

रंगों की बात करना

उदासी से बचने का

एक तरीका हो सकता है

ये तरकीब बहुत देर तक

काम नहीं आती

मीलों दूर का दुःख भी

इतना पास लगता है

जितनी अपनी देह की गंध

रोज की मुश्किल वही होती है

गड्ढों और खाइयों से भरी

रोज की नींद वही

सघन वन जैसी

स्वप्न वही रोज भोर का तारा

लेकिन उनका होना

इतना बेपरवाह है कि

मैं परास्त हो जाता हूँ हर बार

उन्हें सँभालने और बचाने में

सच और झूठ का

कुछ पता नहीं चलता

गलतफहमियों के बीच

बचने और मिट जाने का अंतर

इतना मामूली है कि

जो ऊँगली एक पल पहले

धार की सराहना करती है

सब्जियाँ काटते हुए

वही अगले ही पल

चाकू से कटकर

लहूलुहान हो जाती है|

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४.भूलने की जिद में

पत्थर पर की

लकीर होती हैं स्मृतियाँ

उन्हें भूलना आसान नहीं होता

फिर भी लोग

मिटा देते हैं उन्हें जबरन

खाली हो जाता है उनका मन

जो अपने घर की दीवारों से

घृणा करते हैं

सीलन से दम घुंटता है जिनका

एक दिन वे

अपनी भाषा से

प्यार करना भूल जाते हैं

एक दिन मिलते हैं वे

भीड़ के बीच

अपने खोने का पता पूछते हुए

बिलकुल बेचारा|

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५.आंकड़ों में देखना

जो गिनती में

मरे हुए लोगों को देखते हैं

और खुश होते हैं

बचने के अनुपात देखकर

उन्हें नहीं पता कि

एक आदमी के

मर जाने भर से भी

तबाह हो सकती है एक दुनिया

उजड़ सकती है पूरी तरह

बर्बाद हो सकती है

यह दर्द

वे कभी नहीं जान पाएंगे

जिनका कोई सगा

उस गिनती में शामिल नहीं।

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शंकरानंद

सम्प्रति – लेखन के साथ अध्यापन

संपर्क-क्रांति भवन,कृष्णा नगर,खगडिया-८५१२०४

मोबाइल-८९८६९३३०४९

Email: shankaranand530@gmail.com

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