कविता

उज्जैन से राजनांदगाँव वाया नागपुर

यह मैं हूं या शाख पर टिका आखिरी पत्तायह पतझड़ का मौसम या शुष्क हवा जागती सीदेखना है कृशकाया मेरी चीर देगी पवन का रुखया कि रुख़सत होने की घड़ी आ गई…
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