
एक पुराना पद है – शब्द ब्रह्म है। उसकी अपनी महिमा और सत्ता है। आप जितने बार उसके पास जाते हैं..उतने बार उसके अर्थ और गहराई से खुलते हैं, कई बार एक ही शब्द के नए मायने चिंहुक कर हम तक पहुँच जाते हैं। शब्द घिसते हैं, अर्थ बदलते हैं, समय के अंतराल में नए शब्द गढ़े जाते हैं … शब्द साधक फिर से नए अर्थ संधान करते हैं। उसे और करीब से, और गहराई से जानने के लिए उद्धत और आतुर होकर।
संपूर्ण सृष्टि में मनुष्य एकमात्र ऐसा प्राणी है जिस के पास भाषा की ताकत है। भाषा जिसमें शब्द अपने अर्थ की सत्ता के साथ मौजूद हों। शब्द की शक्ति ने उसे ब्रह्मांड का श्रेष्ठ जीव बना दिया, ये अलग बात है इसी शक्ति ने सबसे ज्यादा छला भी है।
शब्द बिरादरी में हर वो व्यक्ति शामिल है जो शब्द की बिरादरी का है यानी संपूर्ण सृष्टि का मनुष्य। यहां कोई भाषिक भेदभाव नहीं, कोई सीमा नहीं। शब्द का संबंध भी केवल वाग्यंत्रों द्वारा उच्चरित प्रक्रिया से नहीं है, बल्कि यह मानसिक, आत्मिक , भावनात्मक प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य संवाद है। मानसिक, वैचारिक, भावात्मक संवाद। एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य से संवाद, सृष्टि में मौजूद हर शय का आपस में संवाद।
प्रेम की शक्ति सृष्टि के बनने के पूर्व से रही होगी, न होती तो सृष्टि न होती। यदि आप किसी ईश्वरीय सत्ता में यकीन रखते हैं तो यकीनन प्रेम की सत्ता उससे बड़ी सत्ता है। जब कुछ न था, तब प्रेम था। शून्य के पीछे की एकमात्र सत्ता प्रेम है। शब्द बिरादरी की संकल्पना, उसके होने के पूरे आयोजन के पीछे यही शक्ति है। सृष्टि में शेष यह एकमात्र सुंदर चीज़ शब्द बिरादरी की प्राणवायु है। इसी शक्ति के बल पर हम अपने पहले अंक का आगाज़ करते हैं।
इस पत्रिका की कल्पना को साकार रूप देने में हमारी टीम का अथक परिश्रम और उनका जज़्बा श्लाघनीय है। परिवार और दोस्तों का भरोसा, उनका सहयोग, उत्साहवर्धन हमारे लिए बहुमूल्य है। इस काम को शुरू करने पर मिली उनकी एक भरोसे और हमदर्दी से मिली एक मुस्कराहट, एक प्यार का आलिंगन हमारे लिए वाकई ऑक्सीजन की तरह रहा है।
शब्द बिरादरी पूरी तरह से सामाजिक समरसता के साथ खड़ा है। प्रच्छन्न-परोक्ष किसी भी तरह के शोषण व भेदभाव की हम पुरजोर ख़िलाफत करते हैं।
आप सबके स्नेह और शभकामनाएं हमारे साथ हैं..इन्हीं उम्मीदों के साथ…।
अनुराधा गुप्ता
8/10/2024
शुभकामनाएँ!
उम्दा और सराहनीय प्रयास
शुभ कामनाएं
शुभकामनाएं
“ शब्द बिरादरी पूरी तरह सामाजिक समरसता के पक्ष में और समस्त प्रकार के शोषण के ख़िलाफ़ है । “ यह लिखना चाहती थीं शायद आप । “के पक्ष में” न लिखने से लगता है कि यह मंच सामाजिक समरसता के भी विरुद्ध है ।
सुंदर, सार्थक परिकल्पना और आयोजन। बहुत बधाई!
स्वागत योग्य कदम। शुभकामनाएँ।