‘ऐन एक्स्ट्रा हेवी डे’

कहानी

नेहा ने मेंहदी के कुप्पीनुमा पैकेट के मूंह से पिन खींचा और उसे दबाया, मेंहदी बाहर नहीं निकली| बहुत दिनों से रखी हुई शायद सूख गयी थी| नेहा को चिडचिडाहट हुई| हालांकि यह चिडचिडाहट उसे हफ्ते भर से हो रही थी|इस बार पीरियड्स पंद्रह दिन देर से आया था| तारीख सात दिन बढ़ गयी तो पांच सौ किलोमीटर की दूरी पर रह रहा  पति फोन पर ही दिशानिर्देश देने लगा- ‘कुछ दवा वगैरह मत खाईएगा| पहले प्रेगनेंसी टेस्ट कर लीजियेगा| कोई भारी सामान अभी मत उठाईयेगा|’ नेहा ने टेस्ट किया और बाथरूम से नेगेटिव रिजल्ट के साथ-साथ निगेटिव मूड लेकर भी निकली| तब से ही उसे बात बिना बात झल्लाहट हो रही थी| पिछले चार दिनों से पति से सीधे मूंह बात नहीं कर रही थी, जानती थी कि सास तेल मशाले कम खाती हैं फिर भी भाजी में ज्यादा तेल डाल रही थी और दो दफा शीला को पैसा काटने की धमकी दे चुकी थी| कल भी दिन में ऑफिस में उसने गुस्सा किया और रात को सोने के पहले खूब रोई| लेकिन आज जब सुबह उठी तो सफ़ेद रंग पर मधुबनी पेंटिंग के प्रिंट वाले चादर पर एक लाल दाग लग चुका था| उसी वक्त, चादर को बाल्टी के सर्फ़ में भिगोने के बाद दूसरा साफ़ धुला चादर जब पलंग पर बिछाया तो सास ने टोका- ‘अभी ही नया चादर क्यों बिछा दिया, चार दिन बाद अशोक आने ही वाला था तभी इसे बिछाती|

‘क्यों भला, अशोक, कलिंग विजय करके आना वाला है जो उसकी शान में नया चादर बिछा दूं’ नेहा के मन से आवाज आई लेकिन मूंह से सिर्फ इतना कहा-‘वो मैं पीरियड्स में आ गयी हूँ| उस चादर पर थोड़ा दाग लग गया था सो बदल दिया|’ नेहा के सिर्फ इतने से जवाब ने सास का पूरा वजूद हिला दिया |

‘अभी कैसे आपका महीना आ गया| आपका महीना तो अठारह को ही आ जाना था| अब तो एक जून आ गया है| अब कैसे आ गया|’ हैरत और गुस्से से एक साथ सास ने कहा और फिर गुस्सा रोकने की कोशिश में बालकोनी के नल पर पूजा की लुटिया रगड़-रगड़ कर मांजने लगी|

नेहा समझती थी कि नाती पोते की पूरी फ़ौज होने के बावजूद उसकी सास अब सांस ही इसलिए ले रही थी ताकि अपने छोटे बेटे के बाबु को खेला ले|शादी का तीसरा साल चल रहा था उनका, इतने में तो उनके जमाने में पतोहू दो बच्चे की माँ बन जाती थी यहाँ तो कोई खोज खबर ही नहीं है| अब तो बकायदा वो नेहा के महीने की तारीख याद रखती, कितने दिन महिना रहा पूछती और उसके कमरे के सामान को भी गाहे बगाहे उलटती पुलटती| ‘कौन जाने, बच्चा रहने ही न देती हो बहू’ |

‘आपका महिना बार-बार देर से क्यों आता है?’ सूरज भगवान् को जल ढ़ालकर जब लौटी सास तब नेहा से पूछा| ‘हमारा तो हमेशा दो दिन पहले ही आ जाता था’ उन्होंने बताया भी|

 ‘हो जाता है माँ कभी-कभी’  नेहा ने कहा  बस इतना ही, पर मन में कोफ़्त से सोचा- ‘ये आँख बंद कर भगवान् को याद कर रही थी या मेरे पीरियड्स को’

शीला किचन में आटा गूंथ रही थी| ग्रीन टी बनाने के लिए नेहा ने पैन उठाया लेकिन आरओ से पानी भरते हुए पैन हाथ से छूट गया और झन्नाटे के साथ फर्श पर गिरा, नेहा पैन उठाने झुकी तो काउंटर पर रखा गिलास गिर गया| जाने उसे कहाँ से गुस्सा आया जो गिरे हुए गिलास को पाँव से और दूर धकेल दिया लेकिन शीला की उपस्थिति जान फिर खुद को रोका और बस इतना कहा- पीरियड्स में हूँ न, कमर में तेज़ दर्द हो रहा है’

‘तो मालिश कर दूं मैडम जी’ शीला अब अपना काम रोककर एकटक उसे ही देख रही थी|

‘ना रे, रहने दे| इस मालिश से कुछ होता जाता तो है नहीं| एक काम कर तू रोटियां सेक कर, उनपर घी लगा देना| नेनुआ छील कर धो लेना, मैं थोड़ी देर में आती हूँ|’ नेहा ने कहा और कमरे में जाकर तकिये में मूंह छिपा लेट गयी|

 नेहा ने जब शीला को काम पर रखा था तब यही सोचा था कि दोनों वक्त का खाना उसी से बनवाया करेगी| क्या फायदा कमाने का अगर घर का काम करके फिर काम पर जाना हो और काम से आकर फिर काम पर लग जाना हो| उससे अच्छा तो थोड़े पैसे काम वाली को दो और आराम करो| लेकिन मामला तब फंसा जब नेहा की सास ने शीला की बनाई सब्जी की शिकायत करनी शुरू कर दी| फिर तो ननदें भी फोन करने लगी- ‘भाभी, आप बेकार उससे सब्जी बनवाती हैं, तेल की शीशी उड़ेल देती हैं ये काम वाली| कल माँ बता रही थी कि बड़ा तेल मशाला डालती है शीला,पूरा दिन पेट लहरता रहता है उनका| नेहा को भी लगा कि शीला सब्जी काट धो देगी तो बनाने में क्या है| सो शीला झाडू पोछा करके बस रोटियां सेकने लगी और नेहा दाल सब्जी खुद पकाने लगी|

 नेनुआ की सब्जी वैसे तो पसंद नहीं नेहा को लेकिन एक बार हुए पीसीओडी ने इतना तो सतर्क कर ही दिया था कि हरी सब्जियां खूब खाने लगी थी| इस बार भी जब पीरियड्स के डेट्स बढे तो उसे डर हुआ – जाने फिर से पीसीओडी ही लौट आया हो| वैसे भी टेंशन कम थोड़े ही है जिन्दगी में| जाने किसने ये अफवाह फैला रखी है कि सरकारी नौकरी में आराम ही आराम है| एक आकस्मिक अवकाश स्वीकृत तो होता नहीं जल्दी| 

‘देखिये मैडम, चुनाव तक छुट्टी भूल ही जाईये| फिर आप स्वीप में हैं, समझती हैं न क्या करता है स्वीप| स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव के लिए जागरूक करवाता है|अब आप ही छुट्टी ले लेंगी तो जनता को जागरूक कौन करेगा?’ नेहा के नए बॉस ने जब छुट्टी की अर्जी वापस की थी तो नेहा को गुस्सा तो आया था लेकिन उसके बाद जब रोज एक नए ब्लॉक में स्वीप कार्यक्रम करवाना पड़ा तो इतना थकने लगी नेहा कि गुस्सा करने की भी उर्जा नहीं बची| विभागीय कार्य जरा भी कम नहीं हुए और चुनावी कार्य सर पर आ गया|

‘पर आज कहीं नहीं जाउंगी, जा भी नहीं सकती| भला हो बिहार सरकार का जो महिलाओं को पीरियड्स में दो दिनों की छुट्टी तो मिलती है’ उसने मन ही मन बिहार सरकार की पहली महिला मुख्यमंत्री की बलाएं ली जिन्होंने इस छुट्टी की शुरुआत की थी, और उनलोगों को गालियाँ दी जिन्हें यह बिलकुल फिजूल छुट्टी लगती| कागज कलम ले नेहा ने लिखना शुरू किया-

‘सेवा में,

जिला कल्याण पदाधिकारी

…….

विषय : विशेषावकाश के सम्बन्ध में’

                           ………………………………….

आधे में ही लगा कि पेट दर्द बढ़ गया सो उठी और हॉट वाटर बैग गर्म कर पेट के नीचे रख बैठी| किसी तरह आवेदन पूरा किया और ऑफिस के कंप्यूटर ऑपरेटर प्रकाश को भेज दिया| हॉट वाटर बैग भी अब नाकाम लग रहा था| जांघो में खिंचाव बढ़ गया था और लग रहा था वजाइना में कोई पत्थर सी चीज अटक गयी हो| फिर थोड़ी देर के लिए लेट गयी| ऐसे दिनों में नेहा को ऐसे लोगों से रश्क होता जिनका पीरियड्स बिना दर्द के आ जाता| उसे तो पीरियड्स आने के पहले गाल पर एक पिम्पल आता फिर एक और पिम्पल आता, पहले पैरों में दर्द होता, फिर कमर और जांघो में और फिर देवता का आगमन होता| पहले दिन दर्द ज्यादा फ्लो कम| दुसरे दिन दर्द कम फ्लो ज्यादा| नेहा अक्सर अपने पुरुष दोस्तों को बताती- ‘भाई औरत होना कोई बच्चो का खेल नहीं होता है| दोनों हाथों में चूड़ियाँ पहननी होती है और फिर हाथों को औजार बनाना पड़ता है| महीने के ये चार दिन तो बड़े चिड-चिड वाले होते हैं|’

नेहा ने मन भटकाने के लिए पाकिस्तानी ड्रामा देखना शुरू किया| इस ड्रामें के केंद्र वाली लडकी का नाम भी नेहा ही था| दो भाईयों और उनकी पड़ोसी दो बहनों की कहानी, बहने पढ़ाई में अव्वल लेकिन घर के कामों में फिसड्डी, भाई गृहकार्य और कूकिंग में दक्ष| ड्रामे के संवाद मनोरंजक थे| 

थोड़ा हँसते हुए नेहा ने देखा उसकी सास भी बगल में आकर लेटी हुई हैं| 

‘ये आप कौन सा टॉनिक पी रही थी कल?’ अचानक से सास पूछ बैठी|

‘वो अशोकारिष्ट की तरह का टॉनिक है माँ, पीरियड्स को रेगुलेट करता है|’ नेहा को एक बार मन किया कि रेगुलेट का भी मतलब बता दे सास को, लेकिन फिर टाल गयी|

‘लेकिन उसपर अशोकारिष्ट तो नहीं लिखा है’ सास ने फिर पूछा|

‘हाँ, क्योकि वो किसी और कंपनी का है’’ नेहा थोडा तो झल्लाई थी|

‘अच्छा तो जरा हमारे फोन पर फोटो तो लेकर दे दीजियेगा| हम दीदी को भेजेंगे| उनका भी महिना आजकल ठीक नहीं रहता है|’

 ‘सिर्फ तस्वीर क्यों भेजनी है दीदी को, टॉनिक ही भेज देते हैं| या फिर आप खुद जाकर टॉनिक सीधे दीदी के हाथ में क्यों नहीं दे आती| फिर आप माँ बेटी किसी लेबोरेटरी में जाकर उसकी जांच भी करवा लेना’ मन ही मन नेहा ने कहा लेकिन सामने से बस ये कहा- ‘उनका मेनोपोज चल रहा होगा न माँ, इसलिए शायद|’ 

‘अब क्या जाने क्यों?’ सास के टोन में थोड़ी तल्खी थी| नेहा के दिमाग में तूफ़ान| एक पल को नेहा को लगा कि वो सीरियल वाली नेहा से कितनी अलग है| 

दिलों में मोहब्बत भरने वाले पाकिस्तानी ड्रामा में इस पीरियड्स वार्ता से खलल पड़ रहा था या फिर पीरियड्स वार्ता में पाकिस्तानी ड्रामा से खलल पड़ रहा था सो नेहा ने दोनों को बंद कर दिया और छत पर कपड़े डालने चली गयी| जाने सीढियां चढ़ने उतरने से थोड़ी राहत हो| लेकिन आज कुछ भी असर नहीं कर रहा था| दो घंटे के भीतर दर्द कम करने दसों प्राकृतिक नुस्खे अपना लिए गए थे| हॉट वाटर बैग लिया, ग्रीन टी दो बार लिया, तीन पर छत चढ़कर उतरी और लगातार कमरों में चक्कर लगाती रही| एक बार घुलटिया भी मार लिया बिछावन पर| साला एक तो देर से आया और उस पर इतने गाजे बाजे के साथ कि कमर दर्द के साथ नचा ही डाला| नेहा ने सास के कमरे में झाँका| नाश्ता करने के बाद वो पलंग पर सो रही थी| सर पर बाल बहुत कम हो गए थे सो डाई किये गए काले झक- झक बालो के नीचे से सर झाँक रहा था| मूंह खोल कर वो किसी बच्चे की तरह सो रही थी| ‘खुशकिस्मत हैं ये| अब तक तो मेनोपोज हुए भी कुछ अरसा बीत गया होगा इनका तो’ उसके दिमाग में यही बात आयी| 

सास को देखते हुए नेहा की नजर उनके ताखे पर रखी कांवेरी मेंहदी पर पड़ी| शिवरात्रि के समय ही माँ ने मंगवाया था, लेकिन फिर न तो उन्होंने लगवाया न नेहा ने| अचानक से नेहा को लगा कि शादी के बाद वो शुरू-शुरू में सास को माँ ही बोलती थी| तब दफ्तर में उसके बूढ़े बॉस उसकी खूब तारीफ़ करते| अक्सर कहते सास ससुर को देखोगी तो भगवान् तुमको देखेगा| लेकिन फिर धीरे-धीरे दोनों के रिश्ते खराब होने लगे| अशोक तो कभी कभार आता था| नेहा का मन भी नहीं भरता था और उसके जाने की तारीख आ जाती| हाँ, सास हमेशा साथ रहती| नेहा को लगने लगा कि शादी से उसे सुख कम और जिम्मेदारियां ही ज्यादा मिली हैं| अशोक तो वहां अपने दोस्तों के साथ घूम फिर सकता है लेकिन मैं यहाँ उसकी माँ का ख्याल रख रही हूँ| 

‘क्यों, क्या माँ आपका ख्याल नहीं रखती?’ अशोक से जब उसने यही बात कही थी तो उसने पूछा था|

‘रखती हैं, झूठ कैसे बोलूँ| रोज मेरा लंच पैक करती हैं, शाम को देर होने पर शीला से सब्जी बनवा कर आटा गुथवा लेती हैं, छत से कपडे लाकर फोल्ड कर देती हैं| लेकिन मुझे सास के नहीं पति के प्यार की जरूरत है|’उसने अशोक के सीने से लग कर कहा था| 

‘हाँ, मैं समझता नहीं हूँ क्या, मैं भी तो आपको कितना मिस करता हूँ’ अशोक ने कहा लेकिन फिर अगले दिन ही वो चला गया और मेंहदी ताखे पर पड़ी रही| नेहा ने मेंहदी का पिन निकाला लेकिन देर से पड़ा होने की वजह से वो जकड़ गया था| कैंची से काट कर उसमे थोड़ी बड़ा छेद किया और मेंहदी निकलने लगी|काश पीरियड्स का भी ऐसा कुछ कर पाती| दाएं हाथ से बाई हथेली पर मेंहदी लगा ही रही थी कि मोबाइल की घंटी बजी| ऑफिस के बड़ा बाबू का कॉल था| बड़ा बाबू बोले तो हेड क्लर्क| लेकिन सरकारी दफ्तरों में क्लर्क को क्लर्क बोलना उनका अपमान करना है सो राजा से रंक तक सभी उन्हें बड़ा बाबू या छोटा बाबू ही कहते हैं| एक और होते हैं नाजिर बाबू, इनका काम दफ्तर के रुपये पैसे का हिसाब रखना होता है इसके बाद कुछ कार्यपालक सहायक होते हैं कुछ कंप्यूटर ऑपरेटर| नेहा को अपने दफ्तर का कंप्यूटर ऑपरेटर प्रकाश सबसे मस्त लगता| कम उम्र का हंसमुख लड़का| उसे कोई काम कह दो तो तुरत फुरत में कर देता| बाकि पुराने लोग तो अपना पुराना खटराग ही अलापते| अब ये बड़ा बाबू क्या खटराग अलापेगा|

‘बोलिए बड़ा बाबू, क्या बात है|’ नेहा ने फोन उठाते ही पूछा|

‘बोलिए नहीं मैडम, जल्दी ऑफिस आईये| डिप्टी डायरेक्टर सर आये हैं| आपको खोज रहे हैं|’

‘पर मैं तो विशेषावकाश में हूँ|’

‘कैसा विशेषावकाश, हमलोग को तो कोई चिट्ठी नहीं मिली|’

सरकारी कागजों में उमर घटाने के कारण साठ से दो साल कम तक पहुंचे हमारे दफ्तर का बड़ा बाबू एक छोटे कद का दुबला पतला आदमी था जिसके दांत तम्बाकू के दाग से रंगीन और बाल खिजाब से काले थे| यह शख्स चिल्लाने, हडबडाने और बात बनाने में दुनियां में सबसे ज्यादा यकीन रखता और किसी और को परेशान करने का एक मौका नहीं छोड़ता|

‘सौ हरामी मरता है तो एक किरानी पैदा होता है’ ऑफिस के कई कर्मी बड़ा बाबू के बारे में यही बोलते थे, अचानक से नेहा को भी ऐसा बोलने का मन हुआ|

‘लेकिन मैंने तो प्रकाश को भेजी है’ 

‘प्रकाश को क्यों भेजी, वो कंप्यूटर ओपरेटर है| मैं बड़ा बाबू हैं| अभी ऑफिस आइये| डिप्टी डायरेक्टर आये हैं| आपका पूछ रहे हैं|’

गलती तो नेहा से हुई थी| जानती थी कि बड़ा बाबू टेढ़ा आदमी है तो फिर आवेदन की एक कॉपी उसे भी भेज देती| उसने फोन काटा और तत्काल प्रकाश को मिलाया|

‘प्रकाश, तुमने मेरा आवेदन दफ्तर में नहीं रखा क्या?’

‘नहीं रख पाया मैम, खुद फाइल लेकर दुसरे दफ्तर में आया था| सोचा दफ्तर में वापस जाकर रख दूंगा| लेकिन इसी बीच डिप्टी डायरेक्टर सर आ गए| मैम आ जाईये न ऑफिस, आप तो यहीं हैं न|नहीं तो कुछ लिख लाख के ऊपर दे देंगे तो दिक्कत हो जाएगा|’

‘प्रकाश मैं पीरियड्स में हूँ, कैसे आऊं?

 ‘आप घर पर ही है न| हम ही आ जाते हैं आपको लेने| आ जाईये मैम|’ 

पांच मिनट में प्रकाश, बाइक लेकर नेहा के दरवाजे पर खड़ा था और वो कपडे बदल, हाथों की मेंहदी धोकर, पर्स लिए बरामदे में| अब तक सास भी इस शोर गुल से उठ गयी थी और नेहा को जाता देख हैरत में थी|

‘टिफिन नहीं ले जाईयेगा’ उन्होंने बस इतना ही पूछा|

‘दो घंटे में आ जाउंगी माँ’ 

नेहा जब दफ्तर पहुँची तब तक बाकि सभी आ चुके थे| उसके विभाग के जिला, अनुमंडल और प्रखंड के सभी पदाधिकारी| 

‘वो सर मैं विशेषावकाश में थी’ नेहा ने पहुँचते ही सफाई दी|

‘अरे, तो फिर नहीं ही आना चाहिए था न’ डिप्टी डायरेक्टर सर ने नरमी से कहा|

‘हाँ, ताकि बाद में उनको कमाई का मौका मिल सके’ प्रकाश ने धीमे से कहा|

दीवार पर लटके महापुरुषों समेत कमरे में कुल दस पुरुष थे, नेहा अकेली महिला| सभी डिप्टी डायरेक्टर सर के सामने वैसे ही बैठे थे जैसे स्कूल के कड़क मास्टर साहब के सामने बच्चे बैठे होते हैं| कमरे में सबसे ऊँची बॉस की कुर्सी थी, जिस पर डायरेक्टर साहब बैठे थे, फिर एक उससे छोटी कुर्सी थी जिसपर नए बॉस बैठे थे, नेहा और ऑफिस स्टाफ प्लास्टिक कुर्सी पर थे और प्रकाश स्टूल पर| डिप्टी डायरेक्टर के लिए चाय सफ़ेद सेरेमिक कप में आयी, प्रकाश अलमारी से एक और समेरिक कप निकाल लाया जिला कल्याण पदाधिकारी के लिए, नेहा और बाकि लोगों ने कागज के कप में चाय पी|

चाय के कार्यक्रम के बाद जांच का कार्यक्रम था| विशेष जांच नेहा के क्षेत्र में ही था, लड़कियों का एक प्राक प्रशिक्षण केंद्र था, तो उसका जाना आवश्यक था| सभी क्षेत्र परिभ्रमण और जांच के लिए निकले| नेहा नए बॉस की गाड़ी में आज पहली बार बैठी थी| पुराने बॉस धार्मिक थे सो उनकी गाड़ी में भगवान् की कई मूर्तियाँ होती थी, डायबिटिक थे सो कुछ न कुछ खाने पीने का सामान भी होता था लेकिन नए बॉस की तरह उनकी गाडी भी ज्यादा प्रोफेशनल थी| सीट पर सफ़ेद तौलिया और सामने अशोक स्तम्भ की प्रतिकृति और एक तिरंगा झंडा| जिला कल्याण पदाधिकारी दायी तरफ बैठे और नेहा बायीं तरफ, प्रकाश आगे बैठा| गाड़ी डिप्टी डायरेक्टर की गाड़ी के आगे चलने लगी|

शायद सेंटर पर पहले से ही जांच की खबर थी, सो सारी चीजे व्यवस्थित थी| बच्चियों की क्लास बीपीएससी और एसएससी के सिलेबस से ही हो रही थी| सेंटर के संचालक ने पहले से सारी तैयारी करा ली थी| एक पल के लिए नेहा के दिमाग में आया कि बाथरूम इस्तेमाल कर ले और वो उठ कर दरवाजे तक गयी भी लेकिन बाथरूम एक ही था और अन्दर कोई पहले से था| बंद दरवाजा देख नेहा वापस आ गयी और फिर दुबारा जाकर दरवाजा चेक नहीं कर पायी|

डिप्टी डायरेक्टर पूरी कड़ाई से जांच कर रहे थे| बच्चियों से उनका नाम पता पूछा और रजिस्टर से मिलान किया| धीरे से नेहा को बताया कि एक सेंटर पर जांच वाले दिन फर्जी बच्चों को बैठा दिया था संचालक ने, सेंटर में किताबे कम होने को लेकर अपनी चिंता दिखाई और फिर दफ्तर में बैठ कर कुल चौबीस रजिस्टर की मांग की| रजिस्टर तो सोलह ही मिले, नेहा को घबराहट हुई| उसे भी नहीं पता था कि चौबीस रजिस्टर होने चाहिए, वरना संचालक से पहले ही बनवा लेती| पर संचालक संयत था, उसने जो नाश्ता करवाया उसमे कुल दस आइटम थे| चिकेन समोसा, कचौड़ी, घी जलेबी, राबड़ी, गुलाबजामुन, रसमलाई, मिक्चर, क्रीम चॉप और केक स्लाइस| फिर संचालक और डिप्टी डायरेक्टर जात भाई भी निकल गए| दोनों में बात छिड़ गयी| डिप्टी डायरेक्टर को पता चला कि संचालक महोदय की शादी नहीं हुई है तो ज्यादा ही पूछताछ करने लगे| परमानेंट नौकरी ही है न, सैलरी समय पर आ जाती है, पढाई लिखाई कहाँ से हुई’ जिला कल्याण पदाधिकारी और नेहा गौण हो गए, संचालक प्रमुख हो गए| 

‘लगता है डिप्टी डायरेक्टर साहब को अपनी बेटी ब्याहनी है’ प्रकाश ने धीमे से कहा तो नेहा की हंसी छुट गयी|

सेंटर से निकल कर डिप्टी डायरेक्टर स्कूल की जमीन देखने गए, फिर नए बन रहे सामुदायिक भवन का निरिक्षण भी किया| थोड़े बहुत दिशानिर्देश और बहुत बहुत फोटो सेशन के बाद वो वापस चले गए| प्रकाश उनके साथ गाड़ी में गया, ‘कुछ नाश्ता पानी गाड़ी में रखवा देगा’

जिला कल्याण पदाधिकारी एक दूसरी मीटिंग के लिए लेट हो रहे थे, सो तुरत फुरत में गाड़ी वापस समहरणालय आ गयी और बॉस तुरंत उतर कर भागे| नेहा दो पल ज्यादा बैठी रही| पेट दर्द तो अब नहीं हो रहा था लेकिन मन थका हुआ था|

‘चलो, ये बला भी टली’ नेहा ने मन ही मन सोचा लेकिन, अरे नहीं ये क्या हो गया| उतरते वक्त नेहा को जरा चिप-चिप सा लगा, मुड़कर देखा तो उसकी सीट पर  बिछे सफ़ेद तौलिये पर बित्ता भर खून लग चुका था| 

 ‘हे भगवान्, ये कब हो गया| मुझे पता क्यों नहीं चला, अब क्या करूं, सर क्या कहेंगे, क्या करेंगे, उन्हें तो गाड़ी लेकर कहीं और भी जाना था| नेहा ने अपना कुरता भी चेक किया| डार्क ब्लू होने की वजह से दाग का पता नहीं लग रहा था| पर तौलिया भी कम बड़ी मुसीबत न थी|

अब तक ड्राईवर अपनी सीट से पीछे मुड़कर देखने लगा था कि नेहा को देर क्यों हो रही है|

‘काश मैं कहीं गायब हो जाती, या काश ये बुरा सपना होता, अब क्या करूं, रुमाल से पोछ दूं क्या, लेकिन नहीं तौलिया का दाग रुमाल से कैसे पूछेगा, सर को पता चलेगा तो वो क्या सोचेंगे, ड्राईवर को इसे धोने के लिए कह देती हूँ, वो क्या सोचेगा?’

सर के सामने शर्मिंदा होने से ड्राईवर के सामने शर्मिंदा होना थोडा बेहतर लगा नेहा को|

‘सुनो, मैं पीरियड्स में थी| इसलिए तौलिया पर दाग लग गया| तुम इसे बदल देना|’ नेहा ने अपने वजूद की सारी ऊर्जा समेट कर ड्राईवर कहा और बिना उसके जवाब का इन्तजार किये नीचे उतर गयी| एक पल को सोचा कि घर चली जाए लेकिन फिर लगा कि पैदल ज्यादा चलना पड़ जाएगा सो धीमे- धीमे सीढियां चढ़ नेहा दफ्तर तक पहुँची|

‘आप में से कोई मुझे घर तक छोड़ देगा| मैं पीरियड्स में हूँ और मुझे चेंज करना है|’ नेहा ने जैसे पुरुषों से भरे उस कमरे में अचानक से कोई विस्फोट कर दिया था| कमरे में सब कुछ पॉज हो गया था| दस सेकेण्ड की मुर्दा शान्ति के बाद नेहा ने अपनी बात दुहराई- अबकी सब मोशन में आ गये, पता चला कि केशव की बाइक की चाभी प्रकाश के ड्रायर में हैं और चूँकि प्रकाश खुद दुसरे ऑफिस में है इसलिए अजिताभ सर उसे छोड़ने जा सकते हैं| लेकिन अभी वो अपना एक विभागीय प्रपत्र भरने में व्यस्त हैं सो दस मिनट रुकना पड़ेगा| नेहा दस मिनट खड़ी रही, फिर टॉयलेट की तरफ चली तो वहां पानी नहीं था| 

‘साला सरकारी दफ्तर, यहाँ फंड बहता है लेकिन शौचालय में पानी नहीं बहता’ नेहा के जबान से अब गालियाँ निकल रही थी|

अजिताभ सर के बाइक पर भी पूरी सतर्कता से बैठी नेहा, भला हो कि बाइक की सीट का रंग सफ़ेद नहीं होता है| घर पहुँच कर नेहा ने सबसे पहले उनकी सीट को गीले रूमाल से पोछा, हालांकि वो मना करते रहे और सास ऊपर बालकनी से देखती रही| सर ड्राप करके चले गए तो नेहा ने घर आकर चेंज किया और तब भरपेट खाना खाया| खाकर जब कमरे में पंखे के नीचे पलंग पर आकर लेटी तो जी हुआ कि सो ही जाए| लेकिन फिर से ऑफिस जाना था सो बेमन से उठी|

‘फिर से ऑफिस क्यों जा रहीं हैं’ पर्स लेकर जब दुबारा उतरने लगी नेहा तो सास ने टोका|

‘ऑफिस में अंगूठा लगाने वाली मशीन लगी है न, जाना ही होगा’

‘तो फिर आयी ही क्यों थी’

‘पीरियड पैड्स वाला मशीन नहीं लगी है न और न ही टॉयलेट में पानी आ रहा था, इसलिए’ नेहा को अब बोलने का मन नहीं हो रहा था फिर भी कहा|

वापस जाकर, थोड़े काम निबटाकर, बायोमेट्रिक लगाकर जब दफ्तर से बाहर निकली नेहा तो थककर चूर हो चुकी थी| निकलने के समय बड़ा बाबू ने भी सुनाया, ‘मैडम, बायोमेट्रिक में महीने में तीन ही लेट एंट्री होता है, आपका तो शुरुआत में ही एक हो गया’ नेहा ने कोई जवाब नहीं दिया| जवाब देने की ताकत ही नहीं बची थी| आज का दिन कुछ ज्यादा ही लम्बा था, लग रहा था कि एक जन्म बीता चुकी है| लेकिन नहीं अभी तो कुछ और भी बाकि था| ‘ये बॉस की गाड़ी अभी यही है क्या’ बॉस की गाड़ी लगी देख कर अन्दर झाँकने लगी नेहा ‘अरे अन्दर तो बॉस भी हैं| बाहर नहीं गए क्या? देख मत ले मुझे| बुला कर डांट मत दे मुझे| कितना सफ़ेद तौलिया था उनका| अभी कैसे बैठे होंगे? नेहा के दिमाग में एक साथ कई बाते आयी| उनकी गाडी आगे बढ़ गयी तो नेहा को थोडा इत्मीनान हुआ लेकिन उन्होंने फिर से गाड़ी बैक किया|

‘तबियत कैसी है आपकी अभी?’ उनके चेहरे पर नेहा के लिए चिंता थी जो नेहा को अच्छी लगी|

‘ठीक है सर’ नेहा ने गाड़ी में झाँका| वहां से तौलिया हट चुका था| जो दूसरा तौलिया बिछा था वो पुराना था और थोडा पीलापन लिए हुए भी था|

‘कहाँ जा रही हैं’

‘घर’

‘विशेषावकाश ले लेना था न आपको’

‘आवेदन दिया था सर, लेकिन बड़ा बाबू ने जबरदस्ती बुलवा लिया’

‘तो मुझे फोन करना था न, बड़ा बाबू तो पागल आदमी है|…’ वो पांच सेकेण्ड के लिए चुप रहे फिर कहा- ‘मैं घर छोड़ दूं क्या’

 नेहा को आश्चर्य हुआ, इतना कुछ होने के बाद भी वो पूछ रहे हैं|

‘नहीं सर मैं ऑटो से चली जाउंगी’|  नेहा घर पहुँची और बिस्तर पर जा गिरी|

शाम को सुरभी नेहा से मिलने आयी| यूं तो दूर के रिश्ते में सुरभी, नेहा की भगिनी लगती लेकिन इस शहर में दोनों सहेलियां थी| नेहा जब भी सुरभी से अपनी नौकरी का रोना रोती सुरभी कहती ‘अरे दीदी, फिर भी आप ठीक हैं| नौकरी के बहाने घर के बाहर तो निकल पाती हैं| मेरे पति बिजली विभाग में इतने बड़े पद पर हैं, जब उनके साथ बाहर निकलती हूँ तब सब मैडम-मैडम कहते हैं लेकिन जब अकेली घर के अन्दर होती हूँ तो लगता है कि एक नौकरानी से अधिक कुछ नहीं हूँ|’ आज भी उसके पति बाहर गए थे| वो दिनभर घर में रह कर बोर होती रही फिर उससे मिलने चली आयी| 

‘अच्छा सुरभी, एक बात बताईये’ सुरभी जैसे ही कमरे में बैठी, नेहा की सास उससे जाकर लग बैठी  ‘इनका महिना पन्द्रह दिन देर से क्यों आता है|’ उन्होंने पूछा|

‘लो दिन भर में सूरज पूरब से पश्चिम तक घूम गया और सासू माँ वही की वही रही’ नेहा का मन खीज गया लेकिन फिर उसके दिमाग ने दिल को फटकारा ‘सूरज नहीं घूमता है जाहिल, धरती घूमती है’ और इस फटकार पर नेहा मुस्कुरा उठी|

‘होता है नानी, कभी-कभी हो जाता है’ सुरभी ने बात संभाली|

‘हमलोग का तो ऐसा कभी नहीं होता था, दो दिन पहले हो जाता था लेकिन दो दिन देर से नहीं होता था’ सास ने अपनी चिंता दिखाई|

‘ये और मामा दूर रहते हैं न| इसलिए ऐसा हो जाता है| पहले मैं और मेरे हस्बैंड साथ नहीं रहते थे तो मेरा भी पीरियड्स आगे बढ़ जाता था| लेकिन अब साथ है तो सब ठीक है|’

नेहा को समझ नहीं आया कि सुरभी ने सच में ये बात कही या बस उसकी सास का भरम दूर करने के लिए ऐसा कहा| पर नेहा को अच्छा लगा|

……………..दोनों बात करने लगी| नेहा सुरभी के लिए चाय बनाने अन्दर गयी| 

‘अरे ये मेंहदी कब से पड़ा हुआ है, मैं लगा दूं आपको’ सुरभी कमरे से ही चिल्ला पड़ी|

‘यार तुम्ही लगा लो, मुझमे अब मेंहदी लगवाने की भी ताकत नहीं है| वैसे भी थोड़ी ही बची होगी’ 

इलायची वाली चाय पीकर नेहा को अच्छा लगा|

‘कैसा रहा आपका दिन’? सुरभी ने नेहा के बालो में चम्पी करते हुए पूछा|

‘एक्स्ट्रा हेवी था?’ नेहा ने आँखे मूंदे हुए ही जवाब दिया|

संक्षिप्त परिचय

प्रीति प्रकाश

जन्म तिथि- 28/11/1992, बिहार

शिक्षा- पीएच. डी. (हिंदी साहित्य)

हंस, वागर्थ, कथादेश, समालोचन, वर्तमान साहित्य, जानकीपुल, आदि प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कहानियां, अनुवाद, समीक्षा, आलेख आदि प्रकाशित|

राजेन्द्र यादव हंस कथा सम्मान 2020 से सम्मानित

2 thoughts on “‘ऐन एक्स्ट्रा हेवी डे’

  1. बहुत खूब छोटी।जितनी ईमानदारी और बेबाकी से तुमने एक महिला , परिवार और समाज की अपेक्षाओं को प्रकट किया है उसकी कितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। ढेर सारी शुभकामनाएं और प्यार।

  2. तुम्हारी लेखनी का जवाब नही छोटी।जितनी ईमानदारी और बेबाकी से तुमने एक महिला , परिवार और समाज की अपेक्षाओं को प्रकट किया है उसकी कितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। ढेर सारी शुभकामनाएं और प्यार।

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