कला और संस्कृति

ऐसा न होता 

जाने से पहले देखा तो होता ,

ख़्वाबों का घर मेरा टूटा न होता ।

रख लेता तुमको छुपाकर कहीं ,

नज़रों का तुम पर पर्दा न होता ।

ठहर जाते जो तुम्हारे कदम ,

तो ठहरा हुआ वक्त ठहरा न होता ।

ये बदली हुई – सी फ़ज़ाए न होती ,

ये बदला हुआ – सा मौसम न होता ।

बादल बरसते दिल की ज़मीन पर ,

यूँ सूखा हुआ दिल का आँगन न होता ।

आँखों में आँसू मेरे न होते ,

होते जो तुम तो ऐसा न होता ।

Related posts
कला और संस्कृति

कबीर की कविता अर्थात् व्यक्ति का समाज और समाज का व्यक्ति सन्दर्भ

कबीर की पंक्तियाँ हैं, ‘सब दुनी सायान…
Read more
आलेखकला और संस्कृति

भारतीय लोकनाट्य परंपरा की आद्य कड़ी रामलीला : परंपरा और निरंतरता

*  भारत में रामलीलाओं की शुरुआत जिस…
Read more
कला और संस्कृति

उससे प्यार 

मैं आज भी उसे हर क्षण याद करता…
Read more

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *