कबीर की कविता अर्थात् व्यक्ति का समाज और समाज का व्यक्ति सन्दर्भ

कबीर की पंक्तियाँ हैं, ‘सब दुनी सायानी मैं बौरा/ हम बिगरे बिगरी जनि औरा/’. इन पंक्तियों की जानी-पहचानी व्याख्या को छोड़ दें तो ये पंक्तियाँ एक व्यक्ति के ‘बयान’, उसके ‘स्टेटमेंट’ की तरह भी पढ़ी जा सकती हैं. एक ऐसे बयान के तौर पर, जो तब दिया गया मालूम होता है जब कबीर को उनके […]

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भारतीय लोकनाट्य परंपरा की आद्य कड़ी रामलीला : परंपरा और निरंतरता

*  भारत में रामलीलाओं की शुरुआत जिस देश के जनमानस के स्वभाव व संस्कार में उठते राम बैठते राम, सोते राम जागते राम, रोते राम हंसते राम, सुख में राम दु:ख में राम, अहर्निश राम ही राम, राम ही राम, राम ही राम, बसे हों उस देश में राम की के प्रसार माध्यमों कमी कैसे […]

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ऐसा न होता 

जाने से पहले देखा तो होता , ख़्वाबों का घर मेरा टूटा न होता । रख लेता तुमको छुपाकर कहीं , नज़रों का तुम पर पर्दा न होता । ठहर जाते जो तुम्हारे कदम , तो ठहरा हुआ वक्त ठहरा न होता । ये बदली हुई – सी फ़ज़ाए न होती , ये बदला हुआ […]

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अनुराधा ओस की नौ कविताएँ

1    साथ – पेड़ में लगा गूलर का फूलजैसे नेनुआ के फूल किसी छप्पर पर बैठेउजास से भर देते हैं जैसे दिसंबर की ठंड में एक टुकड़ा धूपकलाई पर बंधी घड़ी समय तो नहीं बदल सकतीलेकिन बीतता  समय जरुर बताती है जैसे किसी घने जंगल मेंकच्चा रास्ता मंजिल तक पंहुचा देता हैवसे ही तुम्हारा […]

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उससे प्यार 

मैं आज भी उसे हर क्षण याद करता हूँ, उसका नाम लेता हूँ उसकी बात करता हूँ। वो मेरे ख्यालों में भी है और ख़्वाबों में भी,  आँखें बंद करता हूँ तो उसका दीदार करता हूँ। उसकी तस्वीर बनाता रहता हूँ पन्नो पर, न जाने कितनी कॉपियाँ बेकार करता हूँ। कोई कर दे तारीफ़ मेरे […]

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