1. कविता

रोज की बंधी-बंधाई दिनचर्या से निकली ऊब नहीं है कविता दिनचर्या एक बेस्वाद च्यूंइगम है जिसे बेतरह चबाए जा रहे हैं हम कविता- च्यूइंगम को बाहर निकाल फेंकने की कोशिश है बस …और एक सार्थक प्रयास भी रंगीन स्क्रीनों की चमक से बेरंग हो चली एक पीढ़ी की आँखों में इंद्रधनुषी रंग भरने का मेरे […]

Continue Reading

विजय राही की कविताएँ 

चाह—१  मैंने चाहा था कि  उसकी आँखों में ख़ुद को देखूँ  उसके घर में रहूँ अपना घर समझकर  लेकिन उसने आँखें नहीं खोली  उसने गले से लगाया‌ मुझे   लेकिन अपना मुख नहीं खोला  आँखें झुकाए बैठी रही सामने दिन भर   सिर्फ़ सर हिलाकर हामी भरी कि   वह मुझसे प्रेम करती है   उसकी जिन कस्तूरी आँखों […]

Continue Reading

ललन चतुर्वेदी की कविताएं

इरादतन प्रेम उसके बोलने से मात्र ध्वनि संचरित होती हैउसकी आवाज में कोई रंग नहीं होताउसके पैरों की आहट अनजानी सी लगती है उसका देखना सिर्फ देखना हैदृष्टि न तो संबोधित होती है,न आह्वान करती है रेल के डिब्बे सा चलता रहता है पटरी परयह महज इंजन से जुड़ाव का प्रतिफल है उसकी मुस्कान जैसे […]

Continue Reading