कविता

निहाल सिंह की पांच कवितायेँ

1. मैं न आऊं लौटकर तो

मैं न आऊं लौटकर तो 

तुम गाॅंव के जवानों 

के पाॅंव की माटी 

की टुकड़ी अपनी 

चोखट के ऊपर 

रख देना 

मैं न आऊं लौटकर तो 

तुम खेतों में लहराती 

हुई फसलों पर 

उड़ती बयारों को 

देख लेना 

मैं न आऊं लौटकर तो 

तुम सावन की

 झड़ी में 

होले से गिरती

हुई बूंदों को 

अपनी पलकों पर 

रख लेना

मैं न आऊं लौटकर तो 

तुम उष्ण के दिनों 

में रात को 

छत पर सितारों से 

बातें कर लेना 

इन सभी में 

उपस्थित रहूंगा मैं 

कही न कही 

2. भूस्खलन 

ऊंची -ऊंची चोटियां

गिर कर बिखर 

गई है 

लकड़ी के बने 

मकानों के ऊपर 

मलबे के भीतर 

दब गई 

है मासूम चीखें 

लहू की चिथड़े 

पसरे पड़े है 

कठोर पत्थरों की

छातियों पर 

दस बीस सरकारी 

कर्मचारी आयें है 

उन चिथड़ो की

शिनाकत करने को

आंखें,चेहरा

कान तक 

दब गए है 

मलबे के भीतर 

लाशों को 

पहचानना मुश्किल 

हो गया है 

3. दो मुट्ठी ज्वार 

आषाढ़ का महीना 

आ चुका है 

ऊपर अंम्बर से 

नीला पड़ा

 हुआ है 

नीर की एक 

बूंद तक नहीं

गिरी वसुधा की

छाती पर 

दो मुट्ठी ज्वार 

की बची है 

निलय की भीतर 

खेत मे खड़ी 

खेजड़ी की सांखों 

पर चंद परिन्दे 

अपना घरोंदा 

बनाये हुए है 

घास फूंस का

उनको दो मुट्ठी 

ज्वार की डालकर 

फिर लौटूंगा 

वापस घर को 

इस अकाल के

मौसम में उनको भी 

चाहिए कुछ 

खाने को 

4. पढ़ा लिखा आदमी 

पढ़ा लिखा आदमी 

दुनिया बदल सकता है 

स्वयं की कलम 

के सहारे 

वो शिक्षक बनकर 

नन्हे मुन्ने 

बच्चों को पढा 

लिखा कर अफ्सर 

बना सकता है 

वो इंजिनियर बनकर 

बड़ी इमारतें खड़ी 

कर सकता है 

वो चिकित्सक बनकर 

गम्भीर बिमारियों 

को ठीक कर के

नया जीवन दे 

सकता है 

वो  पायलट बनकर

अंतिरिक्ष में उड़ान 

भर  सकता है 

असंभव को संभव 

कर सकता है 

5. ये दुनिया घूम रही है 

ये दुनिया घूम रही है 

साइकिल के गोल-मटोल 

पहिये की ज्यूॅं 

कोई नौकरी के 

वास्ते रेलगाड़ी और

बसों में धक्के 

खा रहे है 

रात और दिन 

कोई पैसे कमाने 

के वास्ते 

आवारा सड़को के 

किनारों पर चक्कर 

लगा रहें है 

तपती हुई 

धूप में 

कोई प्रेम की

चेष्टा हिय में 

लिए घूम 

रहा है बालिका 

के घर के 

सामने 

निहाल सिंह 

झुंझुनूं, राजस्थान 

ई-मेल – nihal6376r@gmail.com

हिन्दी कुंज, गीता कविता, हिन्दी साहित्य ऑंर्ग, साहित्य कुंज , साहित्य शिल्पी, सेतु पत्रिका, समता मार्ग , आंच पत्रिका, पंखुरी साहित्य इत्यादि में रचनाएं प्रकाशित हो चुकी है।

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